काश !
हम प्याला होते,
दुबके होते बीच,
उनकी हथेलियों में |
कभी थामती,
सलीके से,
दो ही उँगलियों में,
और कभी होते लिपटे,
दसों उँगलियों में |
ज्यादा गरम होता,
शायद साथ हो जाता,
दुपट्टे का भी |
लबों तक भी होता ,
आना जाना अक्सर |
नयन का बिम्ब भी,
उतर ही जाता दिल में,
अक्सर |
ठण्ड भी जब कभी,
होती सुर्ख,
गाल खुद ही रहते बेताब,
छूने को,
मुझको अक्सर |
रहता बेजान,
और अनजान ही,
मगर,
वे कह उठते,
पीने के बाद,
अक्सर,
..
..
..
रखना संभाल के
कहीं टूट ना जाए !
..
..
"और हम टूट जाया करते "!
arey waah..bahut khoob
जवाब देंहटाएंvery good. !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..बहुत ही खूब.
जवाब देंहटाएंअहा, बेहतरीन रचना, पूर्ण प्रतिबिम्ब है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर खयाल ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंGreat expression...
जवाब देंहटाएंवाह अमित भाई,
जवाब देंहटाएंआज तो आपने दिल जीत लिया.
बहुत ही खूब.
बस टूटिये मत.जुड़े रहिये.
अच्छी पंक्तियाँ,सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएं"किलर झपाटे पर मर मिटी बेचारी दिव्या जील"
जवाब देंहटाएंजी हाँ, फ़लानों और ढिकानों,
आप सबको अत्यंत दुख के साथ सूचित किया जाता है कि हमारे ब्लॉग-जगत की एकमात्र लौह महिला (जंग खाई हुई) डॉ. दिव्या ज़ील अपने सबसे प्रिय ब्लॉगर किलर झपाटे के प्यार में पागल होकर उन पर मर मिटीं और ब्लॉगजगत से इंतकाल फ़रमा गईं। यह समाचार ज़ील जी के ब्लॉग पर कल ही प्रकाशित हुआ था। खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई। श्रद्दांजलियों का ढेर लग गया है। बहुत दुख की बात है कि उनका दिल भी आया तो इस जुल्मी किलर झपाटे पर। दुष्ट कहीं का। ज़ील की मोहब्बत को समझ नहीं सका। ऐसे तो कई अन्य ब्लॉगरों ने भी ज़ील के दिल को जीतने की कोशिशें की थीं लेकिन वे सभी लौह महिला के शब्द प्रहारों को बरदाश्त न कर पाने के कारण उन्हें अपनी बहन बना बैठते थे। कोई दीदी तो कोई छोटी बहन। जबकि वे तो टेस्ट करने के लिये प्रहार करती थीं कि ये असली मर्द है भी कि नहीं ? च च च कोई ना मिला। चलिये कोई बात नहीं। इस चक्कर में ज़ील के पास नामरद भाइयों की फ़ौज तो तैयार हो ही गई। छोड़िये।
अब आप लोग तो सब कुछ जानते ही हैं ना कि स्त्री के दिल की थाह कोई पा सका है भला ? पाजी किलर झपाटा ! हाँ नहीं तो, वार पर वार सहता गया और वार पर वार करता भी गया। इतना भी ना समझ सका कि ऐसे में ज़ील के दिल में उसके जैसे जानदार मर्द के प्रति अचानक ही प्यार पनप जायेगा और ..........हटाइये अब बात करके क्या फ़ायदा ? वो तो चली गईं कभी लौट कर ना आने के लिये। अब घूमते रहना बेट्टा झपाटे विरह में। जब वो खाली झूले पर भूतनी बनकर तेरे घर में रात में रोज बारह बजे गाना गायेगी ना सफ़ेद साड़ी पहन कर, बीस साल बाद तक और उस समय तक अपनी प्यारी बहन के गम में झाड़फ़ूँक स्पैशलिस्ट झोलाछाप डॉक्टर रुपेश (इन्हें आदमीयों तक को बहन बनाने का शौक है क्योंकि ये भड़ास पर मुझे बहन जी बहनजी कह रहे हैं बार बार ज़ील की मौत के गम में) जा चुके होंगे हम सब को छोड़कर, तब पूछेंगे कि देख लिया ना ज़ील के प्यार को ठुकराने का नतीजा ?
भगवान ज़ील की प्रीतात्मा (नॉट प्रेतात्मा अण्डर्स्टुड यू नॉटी ब्रदर्स ऑफ़ ज़ील) को शांति प्रदान करे और ............२ मिनट का मौन रखेंगे सब लोग।
खूबसूरत अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ! !
कृपया पधारेँ। http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... प्याले और दिल में फर्क कहाँ होता है ...
जवाब देंहटाएंरखना संभाल के
जवाब देंहटाएंकहीं टूट ना जाए !
..
..
"और हम टूट जाया करते "!
बहुत खूब....!!
amit sir aap shabdo ka chunav bahut hi behtarin karte hai.........
जवाब देंहटाएंखुबसूरत पंक्तियाँ ,सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगज़ब रचना...आनन्दित हुए महाराज!!
जवाब देंहटाएंExcellent site, keep up the good work. I read a lot of blogs on a daily basis and for the most part, people lack substance but, I just wanted to make a quick comment to say I’m glad I found your blog. Thanks.
जवाब देंहटाएंTake a look here Smart people 2
amit ji
जवाब देंहटाएंpyala bhi pratibimb! wah -wah
man ki bhavnaon ka behad hi komalta ke sath varnan
bahut khoob
bahut bahut badhai
poonam
ये सब कल्पनायें कविता में ही अच्छी हैं। वर्ना जिस दिन गरम चाय छनेगी उस दिन फ़ौरन बर्नाल मांगी जायेगी।
जवाब देंहटाएं:)
बहुत खूब लिखे हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर