बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

" सफाई तो हो गई .......देखते देखते "


आनन फानन में बड़े साहब ने मीटिंग बुलाई | विचार हुआ कि २ अक्टूबर के मौके पर कार्यालय प्रांगण की सफाई की जानी है | कुल कर्मचारी /अधिकारी मिला कर गिनती हुई १२१ , अरे यह तो बहुत शुभ अंक है ,अवश्य कुछ अच्छा होने को है ,बड़े साहब बोले | 

सफाई के लिये सब लोग अपने अपने घरों से झाड़ू लेते आयेंगे , एक कर्मचारी ने राय दी | उस कर्मचारी को घूरते हुये बड़े साहब बोले ," नहीं घर का सामान ,दफ्तर मे नहीं लाया जायेगा , यह उचित नहीं |" अपने सबसे खास 'टेंडर बाबू' को बुलाकर कहा ,"शीघ्र एक अल्प कालिक निविदा आमंत्रित करो और उसके माध्यम से १५० अदद झाड़ू और १५० जोड़े दस्ताने क्रय करने क़ी व्यवस्था करो |"

अब सबसे पहला काम झाड़ू की डिज़ाइन का मानक तय करना था | झाड़ू के डंडे की लंबाई , मोटाई और उस पर उच्च कोटि के केसरिया रंग के पेन्ट का कोड तय कर दिया गया | झाड़ू की सींको का 'फ्रंट प्रोफ़ाइल' कुछ इस प्रकार ' डिज़ाइन' किया गया कि झाड़ू लगाते समय झाड़ू और जमीन के मध्य २० अंश का कोण बन सके ,क्योंकि रिसर्च से पता चला है कि इसी अंश के कोण पर झाड़ू से न्यूनतम श्रम के सापेक्ष अधिकतम आउटपुट मिलता है | झाड़ू के सींको के विषय में आम राय यह बनी कि ,सींको के स्थान पर 'ओप्टिकल फाइबर' का प्रयोग किया जाय और झाड़ू के डंडे के उपरी सिरे पर भीतर एक बैटरी चालित बल्ब लगा हो | खोखले डंडे के भीतर से रोशनी प्रवेश करते हुये 'ओप्टिकल फाइबर' वाली सींको से रोशनी उस स्थान पर पड़ेगी जहां सफाई किया जाना होगा | इतनी हाईटेक झाड़ू से कोई भी कूड़ा करकट बचा रहा जाय ,असंभव है | रात को भी अगर सामूहिक सफाई की जायेगी ,इतनी उच्च तकनीक की झाड़ू से, तो मंगल से धरती पर देखने पर असंख्य तारे से बिछे दिखेंगे ज़मीन पर | प्रत्येक झाड़ू पर एक संदेश भी लिखा होगा कि " झाड़ू चलायें ,स्वास्थ्य बनायें |"

अगला मानक दस्तानों का तय किया जाना था | दस्ताने बहुत ही मुलायम और हल्के डिज़ाइन किये गये ,जिससे उन्हे पहनने के बाद भी कलाइयों की लचक बनी रहे क्योंकि झाड़ू लगाते समय कलाई और कमर में लोच / लचक बहुत आवश्यक है |(इस बात पर भी बहुतों ने हामी भरी |) 
 
दोनो महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमत मिलाकर टेंडर की राशि तय हो रही है | बड़े साहब मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं | सफाई तो अब लगभग तय है , भले ही वह सरकारी खजाने की हो | 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल ये वाली सफाई तो आम बात हो गयी है..

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  2. आज सब जगह झाड़ू फिर जाएगा :-)
    झाड़ू मारना और झाड़ा फिरना हिंदुस्तान का प्रिय शगल रहा है :-)

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    1. आज कूड़ा / कचरा कहीं 'मेजॉरिटी' में न आ जाए । सारा कूड़ा / कचरा इकठ्ठा हो कर निश्चित तौर पर 'स्वच्छता' को 'अल्पसंख्यक' बना देगा । इतनी भी सफाई अच्छी नहीं । कूड़ा साफ़ करने से बेहतर है कूड़ा का उत्पादन ही नियंत्रित किया जाय ।

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  3. बहुत सुन्दर !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
    फॉलोवर बनकर अपने सुझाव दे

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