से हम,
और, 
ट्रेन सी हमारी, 
ज़िन्दगी |
पटरियां वहीँ हैं, 
जहाँ थी, 
ट्रेने गुज़र गई कितनी |
हम तो वही,
अब भी |
पर ज़िन्दगी देखो, 
कहाँ पहुच गई |
काश, 
पटरियां भी सफ़र, 
करती,
ट्रेनों के साथ |
और शामिल होते,
हम भी,
ज़िन्दगी के साथ |
पर ज़िन्दगी तो, 
निकल गई,
दूर बहुत,  
बस निशाँ छोड़ गई, 
हमारे वजूद  का |
ज़िन्दगी तो,
रफ़्तार है,
हम बस, 
पटरी सरीखे | 
कितनी जिन्दगियां,
गुज़रती है, 
ऊपर से हमारे,
तमाम रिश्तों की,
नातों की |
नातों की |
कभी कभी क्या, 
अक्सर ही, 
उतरती  है,
पटरी से,
पटरी से,
ज़िन्दगी |
हम तो बस, 
पटरी सरीखे,
ट्रेन सी ज़िन्दगी | 


न जाने हमारे ऊपर से कितनी ट्रेनें निकल जाती हैं और हम वहीं पर खड़े रह जाते हैं।
जवाब देंहटाएं"काश,
जवाब देंहटाएंपटरियां भी सफ़र,
कर पाती,
ट्रेनों के साथ |
और शामिल होते,
हम भी,
ज़िन्दगी के साथ |"
आपकी इस भाव कविता से मुझे कुछ कहानियाँ याद हो आयीं. नीचे क्रमशः लिंक दिये गये हैं.
http://raamkahaani.blogspot.com/2010/03/blog-post_28.html
http://raamkahaani.blogspot.com/2010/03/blog-post_31.html
http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post.html
http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post_06.html
http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post_08.html
रेल की पटरी,
जवाब देंहटाएंसे हम,
और,
ट्रेन सी हमारी,
ज़िन्दगी |
पटरियां वहीँ हैं,
जहाँ थी,
ट्रेने गुज़र गई कितनी |
bahut bareeki ka vishleshan
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
पर इसके लिए पटरियों पर लेटने की क्या ज़रुरत थी ....हमारे घर जाने वाली ट्रेन शायद आप ne hi roki hogi
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
--
Sonal Rastogi
pravah-mayi marmik rachana aapko pahali bar padha sundar laga / abhvyakti ki saralata
जवाब देंहटाएंkavy ko pusht karti hai . sadhuvad ji .
हम तो बस,
जवाब देंहटाएंपटरी सरीखे,
ट्रेन सी ज़िन्दगी
सत्य........
गहन विश्लेषण ज़िंदगी का
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