गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

"डेंगू जो हो ना सका"


 आजकल ऑफ़िस में ५-६ दिनों से सन्नाटा पसरा हुआ है। जिसे देखो सब छुट्टी पर हैं,कारण वही एक छोटा सा मच्छर, डेंगू नाम का। वैसे मच्छर का डंक इतना लंबा तो नही हो सकता  कि वह हमारे विभाग  के कर्मचारियों की मोटी खाल को भेद सके , पर फ़िर भी सबकी अर्ज़ी डेंगूफ़ाइड होने की है, तो मानना तो पड़ेगा ही,सरकारी महकमा जो ठहरा। लोग कह रहे हैं कि मौसम बदल रहा है,यह "वाइरलो" का मौसम है।चलो अब इन वाइरलों के  प्रकार भी याद करने पड़ेंगे, क्योंकि  "कोई सवाल छोटा नही होता", शायद KBC में फ़ास्टेस्ट फ़िंगर फ़र्स्ट मे यही जितवा  दे।

हालचाल लेने के लिये मैने अपने एक सहकर्मी के यहां फ़ोन किया तो उधर से जवाब मिला कि अभी ठीक नही हूं "कटलेट’ खा रहा हूं। तभी बगल से उनकी बेगम की आवाज़ धीरे से आई कि बोलो 'प्लेटलेट' कम हो गया है, उसी की दवा खा रहा हूं। फ़िर गुस्सें मे उन्ही की आवाज़ धीरे से आई कि कटलेट तो सामने से हटाओ तब तो झूठ बोल पाऊंगा। मै समझ गया यह डेंगू तो बडे काम का है ,यह तो इलू इलू करा रहा है।शहर के सारे अस्पताल,नर्सिंग होम फ़ुल हो गये हैं ( आखिर डॉक्टरों की पत्नियां भी तो लक्ष्मी जी का व्रत,उपवास रखती होंगी)। डॉक्टरों की नई गाड़िया धनतेरस पर आने के लिये बुक हो रही हैं। आपस में डॉक्टर शाम को् क्रिकेट के स्कोर की तरह पूछते हैं "कितने डेंगू- सेंचुरी हुई कि नही" उधर से जवाब आता है "जय  हो मच्छर,मरीज़ और मीडिया की, तीनों मिलकर हमारा मनी भी बढ़ा रहें है और मन भी"।
           
शाम को घर लौटा तो काम की अधिकता से (बाकी सब छुट्टी पर जो ठहरे) मै भी कुछ बुझा बुझा सा था,मेरी निजी एवं  इकलौती पत्नी ने पूछ लिया- क्या बात है, मैने कहा थोड़ा हरारत सी लग रही है शायद बुखार हो रहा है। इस पर वे बोली कि ऐसी मेरी किस्मत कहां,मेरी सभी सहेलियां सारे दिन डेंगू , ब्लड टेस्ट,वाइरल फ़ीवर की किस्मे,प्लेटलेट्स और नई नई एंटीबायोटिक्स की बात करती है और मै अनाड़ियों की तरह चुप रहती हूं।अगर कहीं KBC में जाने का चांस मिला तो मै तो हार ही जाऊंगी ना।मैने कहा,"अगर ऐसी बात है तो,आज खोल दो घर की सारी खिड़कियां,दरवाज़े। हटा दो यह मच्छरदानी,फ़ेंक दो यह ओडोमॉस,ऑलआउट और स्वागत करो "डेंगू"  महराज का।
             
पर हमारी किस्मत तो हमसे ऐसे रूठती है जैसे कलमाड़ी से शीला दीक्षित। इतना उपक्रम करने पर भी डेंगू महाराज हमारे ऊपर आसीन नही हुए और हमे हरारत से ही संतोष करना पड़ा और अब कल ऑफ़िस फ़िर  जाना पड़ेगा,ना कटलेट ही मिला ना प्लेटलेट।

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