" एक रात करीब डेढ़ बजे दरवाजे की घंटियाँ जोर जोर से बजीं। देखा तो 2-3 पुलिस की गाड़ियां बाहर खड़ीं थीं और 6-7 जवान दनदनाते घर में घुसे की हमें आपके बागीचे में जाना है। हमने बगीचे का गेट खोला उन्होंने जल्दी जल्दी सब तरफ देखा और हमें "थैंक्स , सॉरी तो डिस्टर्ब यू" कहते चलते बने। हमने बाहर जाकर पूछा तो सिर्फ इतना बताया गया कि किसी अपराधी का पीछा कर रहे हैं जो लोगों के घरों में बागीचे के रास्ते भागता , छिपता घूम रहा है। करीब 10 मिनट बाद फिर एक पुलिस अफसर आया यह कहने कि आपका नाम और फ़ोन नंबर दे दीजिये। पीछा करने में आपके गेरेज का दरवाजा हमसे टूट गया है उसकी जिम्मेदारी हमारी है और हम इतनी रात को आपको डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहते हैं।पता चला कि कुछ लोगों के आपस के किसी झगड़े के तहत कोई साधारण गुंडा था जिसे उन्होंने पकड़ लिया था,और उसी के लिए इतना सब था, और अगर जरूरत पड़ती तो हेलीकाप्टर भी बुलाया जाता पर उसे छोड़ा नहीं जाता। उसके बाद का काम कानून का है कि क्या सजा उसे हो , फिर कोर्ट का, कि सजा सुनाये, बेशक सजा कुछ भी हो परन्तु होगी जरूर और शायद यही व्यवस्था का मुख्य कारण है। "
अगर यही किस्सा भारत में होता तो कुछ यूं होता :
एक रात करीब डेढ़ बजे कोई जोर जोर से गेट भडभड़ा रहा था । गुस्से में, मैं बाहर निकला और देखा कि 2/3 पुलिस के सिपाही घर के भीतर कूदने की फिराक में थे। मैंने कहा , भाई क्यों कूद रहे हो भीतर, और घंटी बजाते तो हम खुद ही गेट खोल देते । आप लोग तो गेट ही तोड़ डालने के चक्कर में है । मैं घर के भीतर था सो कुछ अकड़ दिखा रहा था । मेरे गेट खोल देने के बाद वे सब भीतर आ गए , अब अकड़ की बारी उनकी थी । वे पुलिस वाले बोले, एक तो चोर को अपने घर के भीतर छिपाते हो, ऊपर से अंग्रेजी बोल रहे हो । मैंने कहा , सर मेरे यहाँ चोर , क्या कह रहे हैं आप ! इस पर वे बोले ,अभी अभी एक चोर तुम्हारे घर के अन्दर कूद कर भागा है , उसे बाहर निकालो । मैंने कहा , अरे वह मेरे घर की आड़ लेकर कूद फांद कर भाग गया होगा , मेरा रिश्तेदार थोड़े ही है जो मैं उसे बाहर निकालूँ । इस पर उसमें से एक ने जोर से डंडा फटकते हुए कहा , अभी चोर को छुपाने के जुर्म में चलान कर दूंगा ,सारी ज़िन्दगी जेल में कटेगी । पूरे मोहल्ले में इतने सारे घर हैं , वह तुम्हारे ही गेट के अन्दर क्यों कूदा । मैंने कहा , अरे ! मेरा गेट कम ऊंचाई का है , उसे आसान लगा होगा ,कूद गया होगा और बाकी लोगों के यहाँ चौकीदार रहता है ,सो डर के मारे उधर नहीं गया होगा । मै साधारण सा मध्यम वर्गीय व्यक्ति , मेरा चोर से क्या वास्ता । इस पर पुलिस वाला बोला , ठीक है, पढ़े लिखे लगते हो पर ज्यादा होशियार मत बनो , किसी के माथे पर नहीं लिखा होता कि कोई चोर है कि बादशाह । जितना पूछा जाय , उतना जवाब दो । अब मैं धीरे धीरे एक अत्यंत सामान्य नागरिक की तरह पुलिस के आगे मेमने की तरह गिडगिडाने की मुद्रा में आने लगा था । मैंने कहा , भाई आप पूरे घर की तलाशी ले लो । तलाशी लेने के बहाने उन्होंने पूरे घर को रौंद डाला । उनकी आपाधापी में मेरे घर के 10 / 12 गमले टूट गए , ड्राइंग रूम की कालीन को एकदम अपने गंदे जूतों से कचर डाला । सात / आठ सिगरेट के बचे टुकड़े फेंक गए उस घर में, जहां धुंवे के नाम पर आज तक केवल अगरबत्ती और धूप का ही धुंआ फैला था ।
बड़ी मुश्किल से समझाते समझाते, उन्हें वापस जाने को तैयार किया फिर भी जाते जाते कह गए कि आगे की तफ्तीश के लिए जब कभी थाने बुलाया जाय , चुपचाप चले आना और हाँ , कुछ खर्च वर्च तो कर दो ,घर तो ठीक ठाक बना रखा है । मैंने जल्दी से पत्नी की नज़र बचा कर 500 के चार नोट उनकी मुट्ठी में पकड़ा दिए और उनके जाने के बाद ऐसा महसूस कर रहा था कि जैसे ईश्वर की कृपा से कितना बड़ा जुर्म करके आज पुलिस से बच निकला और किसी तरह एक ग्रह कटा ।
एहसान तेरा होगा मुझ पर, अपने साये से बचने दे।
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक बात...
जवाब देंहटाएंदेश की बुराई नहीं मगर देश के बर्बाद सिस्टम की बुराई तो कर ही सकते हैं...
सादर
अनु
इस किस्से के पीछे कुछ ऐसे ही भाव मेरे मन में थे :):).
जवाब देंहटाएंचलो 500 से पीछा छूट गया। लगता है उड़ीसा पुलिस से पाला पड़ा था। :)
जवाब देंहटाएं500 के चार नोट ,पूरे दो हज़ार हुए सर जी ।
हटाएंसस्ते छूटे।
हटाएंएक कारण यह भी है कि कभी कोई आगे भी नहीं आता कानून की मदद के लिए.करे कोई और भरे कोई वाली मुसीबत गले पड़ जाती है...
जवाब देंहटाएंशिखा की पोस्ट पढ़ते हुए यही लगा मुझे भी !
जवाब देंहटाएंसटीक !
अमितजी क्या खूब उतारी है तस्वीर......अक्षरश:
जवाब देंहटाएं:-) yahi hota
जवाब देंहटाएंबौत सही.
जवाब देंहटाएंयहाँ व्यवस्था के नाम पर यही होता है । सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं