शनिवार, 4 अगस्त 2012

" और कविता मचल गई ......"




आहट हुई आने की उनके,

कविता मेरी मचल गई,

पहले उगी फिर खिली फिर संवर गई,

कभी उलझी निगाहों में उनके,

कभी लबों पे ठहर गई,

डूबी कभी ख्यालों में उनके,

कभी साँसों में घुल गई ,

इंतज़ार में रह गया मैं,

आगोश की उनके,

कविता बरबस लिपट गई,

खुशबू उनकी आती है अब,

कविता से यूं ही अक्सर,

कभी भिगो जाती है मन,

बरसा जाती कभी आँखे जमकर,

रह गया मैं तो तसव्वुर में उनके,

कविता मंजर सारा बयाँ कर गई |

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर..........
    खिली रहे सदा...महकती रहे...

    सादर
    अनु

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  2. सारी भावनाए
    कविता में समा गयी
    बहुत सुन्दर मनभावन कविता...
    :-)

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  3. सचमुच कविता मंजर सारा बयाँ कर गई... खुश्बू से महकती सुन्दर कविता...

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  4. कल 06/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. कविता यूँ ही खिलती रहे, महकती रहे, महकाती रहे...
    ~सादर!!!

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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