"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
कुछ सवाल सचमुच ऐसे ही होते है अमित जी जिनका उत्तर तलाशने में पूरा जीवन समाप्त हो जाता है, और जब उत्तर मिलता है तब तक काफी वक्त निकल गया होता है| शायद जिंदगी इसी का नाम है............................
पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं, वाकई आपकी रचनाओं को पढ़ने कर लगा कि मै पहले क्यों नहीं यहां आ पाया। इंजीनियरिंग से जुड़े होने के बाद भी ऐसी हिंदी और भाव.. क्या बात है. भावपूर्ण रचना..
सलवटों की वजह वक्त भले ही भूला दें, लेकिन यह सलवटें तमाम उम्र यक्ष प्रश्न बन साथ रहेंगी? इन्हीं सलवटों के बीच अपना सब कुछ पाने के लिय,े भले ही खुद को लेकिन जबाव तो देना ही होगा? शुक्रिया। ------------------ रविकुमार सिंह http://babulgwalior.blogspot.com/
bilkul theek kha aapne amit ji...
जवाब देंहटाएं"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"।
बनी सलवटें, वही रहीं,
जवाब देंहटाएंबस आँखें थी और बहीं।
उठे को क्या उठा रहे हो जी?
जवाब देंहटाएंअक्सर लोग यूँ ही सवालों से निकल जाते हैं , क्योंकि कोई जवाब नहीं होता - समझदारी में उसे अनुत्तरित छोड़ देना आसान लगता है
जवाब देंहटाएंkuch sawal aise hi hote jinke utar jindgi bhar hame nhi milte.. vo sawal hi rahte hai...
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जवाब देंहटाएंकुछ सवाल सचमुच ऐसे ही होते है अमित जी जिनका उत्तर तलाशने में पूरा जीवन समाप्त हो जाता है, और जब उत्तर मिलता है तब तक काफी वक्त निकल गया होता है|
जवाब देंहटाएंशायद जिंदगी इसी का नाम है............................
तेरी सुबह कह रही है / तेरी रात का फसाना :)
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित प्रश्न....
जवाब देंहटाएंकोमल भावों की ह्रदयश्पर्सी रचना
कुछ उत्तर कभी न ही मिले तो अच्छा........उनमे एक ये भी........बढ़िया.
जवाब देंहटाएंहाँ जवाब को समेटे हुए अनुत्तरित सवाल ..बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंकुछ प्रश्न जीवन भर अनुत्तरित ही रहते हैं …………चंद शब्दो मे कमाल की भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएं"और मन पे जो छोड़ जा रहे हो,
जवाब देंहटाएंसलवटें,
उनका क्या" behad khoobsurti bhari pangtiyan hain.
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जवाब देंहटाएंएक ही उत्तर है - " इन सलवटों के साथ भी मुस्कुराना सीख लिया जाये"
Very touching creation !
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जवाब देंहटाएंकुछ प्रश्न अनुत्तरित ही अच्छे लगते है
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ..........
सवाल का जवाब बिना दिए ?
जवाब देंहटाएंएक अनुत्तरित प्रश्न ?
भावों का सुन्दर समावेश |
पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं, वाकई आपकी रचनाओं को पढ़ने कर लगा कि मै पहले क्यों नहीं यहां आ पाया। इंजीनियरिंग से जुड़े होने के बाद भी ऐसी हिंदी और भाव.. क्या बात है.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना..
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंह्रदयश्पर्सी रचना..
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों के पास जवाब ही नहीं होता...!
जवाब देंहटाएंपरिस्थिति से नज़रें बचा कर निकल जाना ही बेहतर होता है..!!
क्या कोमल अहसास हैं..कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..
जवाब देंहटाएंआदरणीय अमित जी,
जवाब देंहटाएंयथायोग्य अभिवादन् ।
सलवटों की वजह वक्त भले ही भूला दें, लेकिन यह सलवटें तमाम उम्र यक्ष प्रश्न बन साथ रहेंगी? इन्हीं सलवटों के बीच अपना सब कुछ पाने के लिय,े भले ही खुद को लेकिन जबाव तो देना ही होगा?
शुक्रिया।
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रविकुमार सिंह http://babulgwalior.blogspot.com/
सवालों से भाग जाना आसान लगता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत धार-दार ..
यहाँ पधारें ...आपका स्वागत है
http://shikhagupta83.blogspot.in/