यूं तो जाता नही कोई,
जाता भी है पर रुलाता नही कोई,
होठों पे तेरे इतनी हंसी थी कैसे,
दूर जाने से इतनी खुशी हो जैसे,
माना कि दरिया के दो छोर थे हम,
ना मिलें ना सही पर,
जीवन के बहाव को,
दे सकते थे गति साथ साथ,
दूर से ही सही,
पर तुमपे तो अभी "पर" हैं,
उड़ो और ऊंचा उड़ो,
मेरे "पर" तो बोझिल हैं,
मेरे ही आंसुओं से,
जो जब कभी भी निकले चुपके से,
तुम्हारे ही लिये निकले,
पर तुम्हारे "पर" हमेशा,
सुखाते रहे मेरी नम आंखों को,
और अन्ततः हारे,मेरे ही आंसू ।
्बहुत सुन्दर्……………भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही लिये निकले,
जवाब देंहटाएंपर तुम्हारे "पर" हमेशा,
सुखाते रहे मेरी नम आंखों को,
और अन्ततः हारे,मेरे ही आंसू ।
gazab ki abhivyakti
बेहद भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत अच्छी और भावपूर्ण लगी .. आपकी रचना आज दिनाक ३ दिसंबर को चर्चामंच पर रखी गयी है ... http://charchamanch.blogspot.com
जवाब देंहटाएंआँसुओं को सूखना ही होगा.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपर तुम्हारे "पर" हमेशा,
जवाब देंहटाएंसुखाते रहे मेरी नम आंखों को,
और अन्ततः हारे,मेरे ही आंसू ।
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..आभार
भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंआदरणीया अना जी,सोनल जी,वन्दना जी,संगीता स्वरूप जी,अनुपमा जी एवं आदरणीय एम वर्मा साहब एवं श्रद्धेय कैलाश सी शर्मा साहब:आप लोगों को ह्रदय से धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंडा.नूतन-नीति जी, अपनी चर्चा परिधि में आपने मुझे शामिल किया-शुक्रिया ।