गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

"संस्कार"

वह पल याद नही,
जब तस्वीर हटी हो आंखों से,
श्रद्धा ही श्रद्धा से ओतप्रोत है मन,
इसे प्रतिबिम्बित करने का नही कोई जतन,
अपराध तो किया है चुप रहकर,
पर ना चुप रहता तो शायद,
बड़ा अपराध हो जाता,
दोनों दशा में मेरा ही कसूर,
आज जो भी है हासिल,
आपका आशीर्वाद ही है शामिल,
पर यह भी सच है,
अगर स्थिति होती विपरीत,
शायद मै यह ना होने देता,
लोग क्या कहेंगे,
कभी सोचा नही,
आप भी ऐसा ही कहेंगे,
यह भी कभी सोचा नही,
आशीर्वाद मिलता रहे,
दूर से ही सही,
भय बस इतना है,
कोई यह ना कह दे,
कंही "संस्कार" में तो कमी नही।

9 टिप्‍पणियां:

  1. पर ना चुप रहता तो शायद,
    बड़ा अपराध हो जाता...
    तो चुप हो जाना ही बेहतर था ...
    मगर चुप का कारण बता देना चाहिए था वर्ना किसी दिल में जाने कैसी कसक रह जाए !

    जवाब देंहटाएं

  2. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

    जवाब देंहटाएं
  3. वाणी गीत जी,वंदना जी,शिवम साहब और डॉ. साहब बहुत बहुत आभार, इस स्नेह के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अमित श्रीवास्तव जी,

    एक संदेदनशील ही अपने संस्कारो पर सजग रह सकता है,

    शानदार प्रस्तूति!!

    जवाब देंहटाएं
  5. संस्कार के प्रति सजगता अच्छी है .... संवेदनशील रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. गहन । अंतिम पंक्ति में सारी कविता का सार ।

    जवाब देंहटाएं