तुम्हारी ये ना कैसी,
किसी की तो ज़िन्दगी,
रूठी हो जैसे,
हंसी भी हंसी,
अपनी किस्मत पर,
कि बीच रास्ते से,
लौटी वह भी अक्सर,
अब जब पुतलियां भी मजे से हैं आंसुओ मे,
कहते हो एक बार फ़िर देखो,
आंखे उड़ेल कर,
रहम करो अब अपनी,
बार बार होने वाली जीत पर,
क्योंकि बार बार होने वाले,
सिलसिले भी थकते हैं अक्सर।
रहम करो अब अपनी,
जवाब देंहटाएंबार बार होने वाली जीत पर,
क्योंकि बार बार होने वाले,
सिलसिले भी थकते हैं अक्सर
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
@कैलाश शर्मा साहब आभार ।
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