सोमवार, 13 दिसंबर 2010

"एक इल्तिजा छोटी सी........."

आँखें मूंद लो अपनी,

तुम्हें निहारना चाहता हूँ,

चेहरा रख दो मेरी हथेलियों पे,

थोड़ा दुलराना चाहता हूँ,

नज़र भी कह रही मेरी,

भर नज़र देख लूं तुमको,

आसमाँ पे मै आज,

सितारे टांकना चाहता हूँ,

ना तुम कुछ कहो आज़,

बोलूँ ना कुछ मै भी आज़,

दिल से ही दिल को सुनना चाहता हूँ,

थोड़ी लाज़ तुम भूलो थोड़ी हिचक मै छोडूँ,

तुम्हारी बाहों में मै आज़ सिमटना चाहता हूँ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता....

    सृजन शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "

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  2. सदैव की तरह पुनः आप सभी का स्नेह मिला। बहुत बहुत शुक्रिया।आपके स्नेह की अगली किश्त के इन्तज़ार में..

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  3. एक पूरा वर्ष बीत चुका है ,इल्तिजा पर सुनवाई हुई ?

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