आज देखा उसकी कोहराई आंखों में,
बनता है एक इन्द्र धनुष,
जब वह हंस देती है,
आंखों में आंसू भरे भरे,
कैसी समानता है,
आसमान का इन्द्रधनुष भी,
बनता बारिश के बाद धूप में,
और उसकी आंखों में भी,
आंसुऒं के बाद पर,
मुस्कुराहट की धूप के साथ,
पर यह दोनों ही इन्द्रधनुष,
क्यों बिखर जाते हैं,
कुछ ही पलों के बाद,
काश! ऐसा होता,
दोनों ही इन्द्रधनुष ना बिखरते,
समय के साथ,
और यूं ही धूप खिली रहती,
उसके होठों पे।
... sundar rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंऐसा कब हुआ है मनचाहा।
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
सुंदर रंगों से सजी अभिव्यक्ति..... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल भावों से सजी रचना ..
जवाब देंहटाएंआप सभी को इस स्नेह के लिये स्नेहिल आभार ।
जवाब देंहटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंthree good.
जवाब देंहटाएंकोहराई आंखों में इन्द्रधनुष! गजब है भैये। जैसे किसी उजाड़ गांव में मुख्यमंत्री के दौरे पर झट से चमाचम सड़क बन जाती है वैसे ही कोहराई आंखों में इन्द्रधनुष उगा दिया। ये होता है झकास काम! :)
amit ji mai to pehle hi fan hu aapki rachnaao ki ..shabd nahi hai is rachna ki tareef ke liye basically i m a fan of ur innovative thoughts aur uske baad uska presentation ..behad khoobsurat :-)
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