मंगलवार, 30 नवंबर 2010

"पहरा पलकों का"

पुरानी यादों को टटोलने के लिये,
उस पर पड़ी नई कच्ची यादों को,
बुहार रहा था पलकों से,
पर यह क्या,
पलकों की बुहारन में,
उनकी ही पलकें झलक गई,
और फ़िर उलझ भी गईं आपस में,
फ़िर जो सिलसिला शुरु हुआ,
पलकों को समेटने और बटोरने का,
तो यादें परत दरपरत खुलती गईं,
उनकी पलकें,नज़र भरे नयन,
कपोलों को चूमती बालियां,
उलटा प्रश्न-चिन्ह सा बनाती लटें,
मुस्कुराते होठों के दोनो ओर बनते कोष्ठक,
सांसो के अनुपात में होती कम्पित धड़कन,
उंगलियों में फ़ंसी और खेलती गले की माला,
बहुत कुछ और सभी कुछ याद आता गया,
मुझे लगा कि ऐसा ना हो कि,
पलकों की बुहारन में ,
मैं उन यादों को भी बुहार दूं,
जिन्हें मैं क्या कोई भी,
जीवन भर संजो के रखना चाहेगा,
इसीलिये मैने झट से पलकें,
मूंद लीं और उन्हीं की पलकों का,
पहरा बिठा दिया।

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन भर संजो के रखना चाहेगा,
    इसीलिये मैने झट से पलकें,
    मूंद लीं और उन्हीं की पलकों का,
    पहरा बिठा दिया।

    BAHUT KHOOBSURAT

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  2. इसीलिये मैने झट से पलकें,
    मूंद लीं और उन्हीं की पलकों का,
    पहरा बिठा दिया।

    अब कोई RTI में सारे विवरण मांगेगा देखना!

    उल्टे प्रश्नचिन्ह और कोष्ठक गजब हैं।

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  3. @सोनल जी,वन्दना जी अच्छा लगता है,सच आप लोगों से शाबाशी पाकर ।
    @अनूप शुक्ला सर,अब जाकर हम धन्य हुए।आखिरकार आपसे हमने अपनी पोस्ट पढ़वा ही ली ।रहा RTI का प्रश्न तो वह तो रोज़ का हो गया है।ज्यादतर जवाब गलत ही देते हैं ,पकड़े जाते हैं लेकिन भोली सूरत का फ़ायदा मिलता है और फ़िर छूट जाते हैं। वैसे भी बहुत पुराने audit para suo-moto समाप्त-प्राय हो ही जाते हैं।

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  4. बहुत भावपूर्ण ...प्रेम की कोमल भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  5. @श्रद्धेय कैलाश शर्मा साहब :बहुत बहुत शुक्रिया ।

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