यह एहसास भी था उसे कि,
"वो" सच में खूबसूरत बहुत है,
और यही एहसास उसे दिन हर दिन,
और भी जालिम किये जा रहा था,
मुझ में ना जाने क्या दिखा उसे,
एकदिन होठों से मुसकुराते हुए,
आंखों आंखों से बोल बैठी कि,
मेरा निहारना,
आंखों आंखों से बोल बैठी कि,
मेरा निहारना,
उसे अच्छा लगता है ।
यह शुरुआत थी,
एकबार मैं सीढियां चढ़ रहा था,
और "वो" नीचे पानी भरी बाल्टी रखे,
शायद चावल धुल रही थीं,
अचानक पानी में मैने जो,
अक्स उसका देखा तो देखता ही रह गया,
मैने शरारतन एक भारी सा तिनका जो,
बाल्टी में फ़ेंका तो पानी मॆं,
भंवर सी बन गई और उसका चेहरा,
गोल गोल सा घूमने लगा,
गोल गोल सा घूमने लगा,
घूम उसका अक्स रहा था और चक्कर सा मुझे,
आ रहा था।
याद आज यह सब इस लिये आ गया,
क्योंकि "वो" साधारण सी लड़की ,
पर असाधारण चेहरे वाली थी,
पर असाधारण चेहरे वाली थी,
जिसने कभी जाना ही ना था कि,
श्रॄंगार क्या होता है,
पर उसे देखने वाला पूरी तरह,
श्रॄंगार रस में सराबोर हो जाता था,
परंतु प्रकॄति की तो विडम्बना है कि,
कभी अच्छे और बहुत अच्छे लोगों को,
जीवन भर का अच्छा साथ नही,
नसीब होता और "वो" भी अन्ततः बेनसीब,
हो गई परन्तु मैं शायद आज भी कहीं,
हो गई परन्तु मैं शायद आज भी कहीं,
उसे अपने जेहन में जिन्दा रखे हूं,
पर उसे क्या पता.......
सहज भावनाओं की की सरल,सहज,सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंमन के भावों को सहज अभिव्यक्त किया है .
जवाब देंहटाएंयाद आज यह सब इस लिये आ गया,
जवाब देंहटाएंक्योंकि "वो" साधारण सी लड़की ,
पर असाधारण चेहरे वाली थी,
जिसने कभी जाना ही ना था कि,
श्रॄंगार क्या होता है,
पर उसे देखने वाला पूरी तरह,
श्रॄंगार रस में सराबोर हो जाता था,
सच मे श्रृंगार रस मे सराबोर कर दिया…………क्या खूब चित्र उकेरा है जैसे सामने ही बैठा हो…………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
आदरणीय वाणी गीत जी,संगीता स्वरूप जी,वंदना जी और डोरोथी जी बहुत बहुत आभार। (यह सच्चा प्रसंग था,बस अचानक याद आ गया था)
जवाब देंहटाएंItne saal saath mein gujarne ke baad bhi tumahre vyaktitva ka ye pehlu meri liye anchua hee tha. Waah.
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat
जवाब देंहटाएं@प्रिय अधीर एवं सोनल जी दिल की सबसे गहरी सतह से शुक्रिया ।
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