सोमवार, 22 नवंबर 2010

"अखबार" और राष्ट्र का चरित्र


सही और गलत,सच और झूठ,मान और अपमान का कोई पैमाना नही है। सब सापेक्ष है। परिस्थितियां ही न्याय और अन्याय तय करती हैं। मनुष्य अपने द्वारा किये गये कार्य अथवा अपनी सोच को परिस्थितिपरक कारणों से justify करने का प्रयास करता है और अपने कॄत कार्यों से ही अपना चरित्र बनाता है और शीर्ष पर विराजमान लोगों के कार्यो एवं सोच से राष्ट्र का चरित्र दर्शित होता है।
             
यदि कभी कोई व्यक्ति ना चाहते हुए अथवा तनिक लोभवश कोई गलत कार्य या भ्रष्ट आचरण कर बैठता है और चूंकि वह स्वयं में अच्छा व्यक्ति है अतः उसे रात भर नींद भी नही आती और मन कसमसाता रहता है,यहां तक कि वह रात ही रात में यह भी तय कर चुका होता है कि सुबह सबसे पहले उस गलत आचरण का निवारण करना है।
              
परंतु सबेरे जब वह अखबार में देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन लोगों के कारनामों से रूबरू होता है तब उसे अपने द्वारा किये गये गलत काम बहुत नगण्य से और लगभग justified भी लगने लगते हैं। (यह बात घूसखोरी,गबन,अपरहण बलात्कार जैसे सभी कॄत्यों पर लागू होती है।) और यह प्रक्रिया एक vicious circle की तरह चलने लगती है।
               
भय तो इस बात का है कि ऐसे गलत कामों के justification ही धीरे धीरे नई generation को इस कदर convince कर दे रहे है कि उन्हें यह सब राजनीति में प्रवेश करने का माध्यम और अवसर सा लगने लगा है।
               
कैसी विडम्बना है कि राष्ट्र का चरित्र "अखबार" समाज की इकाई "मनुष्य" का चरित्र बिगाड़ने को अग्रसर है।


                               "शायद आवश्यकता सोचने की है अब मीडिया को ..."

1 टिप्पणी:


  1. दिनांक 21/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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