"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
लाजवाब :) ... ऐसा लगा बेतरतीब ज़िन्दगी के कमरे में बेतरतीब से शब्द खिलौने जैसे फैले हों... बार बार उन्हें फैलाना..फिर उन्हें समेटना...इसी मे तो मज़ा है ....
सच कहा, ऐसी बिखरी जिन्दगी को तो समेटना ही होगा।
जवाब देंहटाएंकुछ समझ नही आई…………कुछ तो समेटा होता।
जवाब देंहटाएंwaakai betartib zindagi ... in shabdon ki tarah, n samete jayen n samjhe jayen
जवाब देंहटाएंAji pradabdh nahi,bahut sundar kahiye jo aapko mila hai saugat.
जवाब देंहटाएंअपनी बिखरी जिन्दगी तो अपने को ही मुश्किल से समझ में आती है कोई दूसरा तो बिलकुल नहीं समझ सकता है.
जवाब देंहटाएंbahut khoob..par kya ye bikhrav samet pate hain ham...
जवाब देंहटाएंलाजवाब :) ... ऐसा लगा बेतरतीब ज़िन्दगी के कमरे में बेतरतीब से शब्द खिलौने जैसे फैले हों... बार बार उन्हें फैलाना..फिर उन्हें समेटना...इसी मे तो मज़ा है ....
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील प्रस्तुति...जीवन में हर पल कुछ न कुछ बिखरता रहता है, लेकिन उसको सहेजने की कोशिश जारी रहनी चाहिए..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत ही भयंकर रुप से बेतरतीव है
जवाब देंहटाएंबेतरतीब सी जिंदगी....सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमुझे प्रभावित कर रहा है..ये बेतरतीबी...
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