रविवार, 26 जून 2011

'scalar' से ' vector' तक, एक नए 'अंदाज़' में....

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              'वेक्टर' और 'स्केलर' में सरल सा अंतर है कि, जिस राशि या परिमाण में दिशा का भी बोध अथवा महत्त्व हो ,उसे वेक्टर quantity और जिस में दिशा का महत्त्व या बोध ना हो ,उसे स्केलर quantity की श्रेणी में रखते हैं | यह तो हुई फिजिक्स की बात | 
              आम ज़िदगी में भी यही अंतर अक्सर देखने को मिलता है | कोई अपना जीवन बस यूँ ही जिए चला जा रहा है ,तो उसका पूरा जीवन ही स्केलर हो गया ,हाँ अगर उसका कोई लक्ष्य है ,फिर वो वेक्टर है | बच्चों की पढ़ाई ,शिक्षा अगर निरुद्देश्य हो रही है तो वो स्केलर ही है | अतः 'शिक्षा पद्धति' को वेक्टर quantity बनाना चाहिए | प्रायः बचपन तो सभी का स्केलर ही होता है और होना भी चाहिए अगर किसी का बचपन वेक्टर है तो भी यह गंभीर बात है , बचपन तो बस बचपन होना चाहिए , लक्ष्यहीन दिशाहीन और चिन्ताहीन | परन्तु  जो गरीब हैं ,अनाथ हैं ,जो  बचपन  से ही भूख के लिए संघर्ष करना शुरू कर देतें हैं ,उनका बचपन तो तभी से वेक्टर हो जाता हैं ,बस उन्हें भूख मिटाने  की दिशा की और चलने कि सुध रहती है |परन्तु यही गरीब बच्चा बड़ा होकर स्केलर हो इधर उधर मारा फिरता है ,दिशाहीन |
                अमीरों और सम्पन्नों की ज़िन्दगी स्केलर से वेक्टर होती रहती है और गरीबों की वेक्टर से स्केलर | अब धर्म की बात करें तो यह सच है सभी धर्म वेक्टर हैं ,परन्तु पूजा पाठ के तौर तरीके ,या धर्मगुरुओं की बातें सब स्केलर हैं एकदम दिशाहीन है | 
                जब हम स्वतन्त्र नहीं थे ,देश गुलाम था ,तब हमारा पूरा देश ही स्केलर था ,अंग्रेजों के हाथ में लुढ़क रहा था | हम आजाद हुए ,दिशा मिली | देश हमारा वेक्टर की श्रेणी में आना शुरू हुआ ,पर देश के नेता ,जो अपने मकसद में तो वेक्टर हैं लेकिन पूरे देश को दिशाहीन  करते हुए उसे स्केलर बनाने पर तुले हुए हैं | इस देश में रोग ,महामारी ,बेरोज़गारी बड़ी तेज़ी से वेक्टर होती जा रही है ,उसे स्केलर बनाने पर बल दिया जाना चाहिए |
                अन्ना और रामदेव का मुद्दा भी बड़ी आसानी से वेक्टर से स्केलर में बदल दिया गया | आम आदमी जब तक समझ पाता है तब तक देर हो चुकी  होती है |
                 प्यार , इश्क ,रोमांस में भी यह अंतर बखूबी किया जा सकता है | किसी को आपने देखा या उससे मुलाक़ात हुई ,वो अच्छा लगा | तमाम लोग मिलते रहते हैं ,बस किसी से  मिलना, बात करना, मन को भा गया, और फिर सिलसिला चल निकला  ,मगर  अभी यह रोमांस है और किसी से भी हो सकता है ,अतः अभी यह स्केलर  है | हाँ, रोमांस इतना बढ़ गया कि अब उसके बिना रह पाना मुश्किल ,सारा दिन बस उसी दिशा में ,निश्चित रूप से उसी के बारे में सोचना शुरू कर दिया ,अब यह प्यार कहलायेगा और वेक्टर की श्रेणी में रखना पडेगा | अर्थात रोमांस स्केलर है, और प्यार वेक्टर |
                परन्तु जीवन का अंत तो निश्चित है ,उसकी अंतिम दिशा और दशा तो पूरी तरह से सर्वविदित है , अतः सम्पूर्ण जीवन तो अंततः वेक्टर ही है | 
                "जन्म scalar है , और मृत्यु vector" | इसीलिए प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ स्केलर और अंत वेक्टर ही होना चाहिए | 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जब विज्ञान और साहित्य का मिलन हो जाए तो ऐसी ही रचना पढने को मिलती है..
    बहुत ही शानदार...
    और निष्कर्ष भी अच्छा लगा....
    जन्म scalar है , और मृत्यु vector" | इसीलिए प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ स्केलर और अंत वेक्टर ही होना चाहिए |

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  2. इस अंतर को बहुत स्पष्ट रुप से समझाया गया है

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  3. इतना गहरा दर्शन इतनी सरलता से। इस तीर की नोक को भोथरा करने में लगे हुये हैं लोग।

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  4. विज्ञान और दर्शन का सुन्दर समागम.

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  5. वेक्टर और स्केलर को नए परिप्रेक्ष्य में भी समझ लिया . बहुत खूब टाइप

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