रोहित शेखर को अंततः अपने पिता का प्रमाण मिल गया | उचित बात है,परन्तु पिछले ३३ वर्षों में उसने कितनी त्रासदी सही होगी ,वह और उसकी माँ ही जानती होंगी | समाज तो उसे जीता जागता एक गाली का पर्याय ही मान रहा था बस, पर अब जब तथ्यों की पुष्टि हो गई तब सब उनके साथ खड़े दिख रहे हैं |
ऐसा क्यों होता है | पर पुरुष अथवा पर स्त्री से संबंध, वह भी इस हद तक , कि न चाहते हुए भी संतान का जन्म हो जाए | ऐसी घटनाओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए | अधिकतर जब पुरुष अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित पद पर आसीन होता है और साथ ही साथ पब्लिक लाइफ में भी होता है, जहां उसे विभिन्न वर्गों के लोगों से अक्सर मिलना जुलना होता है तब अक्सर ऐसे पुरुषों से प्रभावित हो कर महिलाएं उनके संपर्क में आती हैं और मित्रता , घनिष्ठता और सामीप्य इस कदर बढ़ जाता है कि शायद कदम रुक नहीं पाते | यहाँ तक तो सब ठीक है , सबको स्वतंत्रता है अपना जीवन जीने की , परन्तु यह ध्यान अवश्य होना चाहिए कि इसका परिणाम ऐसा न हो कि अनचाही संतान का जन्म हो जाए और उसे जीवन भर झेलना पड़े | अधिकतर इसकी जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है पर कभी कभी कुछ महिलायें मन ही मन नामी गिरामी पुरुषों से संसर्ग कर उनके बच्चे को जन्म भी देना चाहती हैं | इसमें दो स्थितियां होती हैं पहली यह कि, वह जानती हैं कि उनके संबंध को समाज मान्यता नहीं देगा परन्तु वह इतना अधिक भावनात्मक और मानसिक रूप से स्वयं को उस पुरुष से जोड़ लेती हैं कि उसके बच्चे को अपने गर्भ में धारण करना चाहती हैं , दूसरी स्थिति वह होती है जब संबंध तो बन जाते हैं पर समय बीतने के साथ पुरुष उसे महत्त्व देना कम करने लगता है , तब वह महिला प्रतिशोध के तौर पर उसके बच्चे को जन्म देना चाहती है और सोचती है कि जब मेरी लोक लाज समाप्त हो गई तब मैं उस पुरुष को भी समाज के सामने नंगा क्यों न कर दूं | इसमें ब्लैक मेलिंग की भावना भी होती है |
जितने भी इस तरह के प्रकरण हुए हैं सबमे पुरुष किसी महत्त्व पूर्ण पोजीशन वाला ही रहा है | होता तो इसके विपरीत भी है कि ऊंचे परिवार या प्रतिष्ठा वाली महिला का किसी सामान्य पुरुष से संबंध हो जाए परन्तु ऐसी किसी घटना की जानकारी पूरी तरह से समाज को नहीं हो पाती और न ही कभी कोई ईशू बनता है | हाँ ! अधिकतर ऐसे परिवार वाले उस साधारण से पुरुष की ह्त्या अवश्य करा देते हैं |
स्त्री पुरुष के संसर्ग से यदि गर्भ धारण की स्थिति बन गई , संसर्ग चाहे नैतिक हो या अनैतिक , फिर संतान की उत्पत्ति तो होनी ही है | संतानोपत्ति की प्रक्रिया में बाईलॉजिकली इस बात का कोई असर नहीं होता कि संसर्ग स्वेच्छा से हुआ है या बलपूर्वक | बच्चे का जन्म १०० प्रतिशत स्वभाविक रूप से हो जाता है | प्रत्येक स्थिति में मातृत्व की भावना एक सामान ही होती है | सारी नीति और अनीति संसर्ग तक ही विवेचित होती है | ईश्वर की नज़र में जब बच्चे ने जन्म ले ही लिया तब वह उसकी माँ के वक्ष में पूरा मातृत्व उड़ेल देता है |
रोहित शेखर के मामले में जितना दोष उसके पिता का है उससे कहीं अधिक दोष उसकी माँ का भी है , आखिर ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई | स्त्री पुरुष के संबंध और संतान की उत्पत्ति दो पूरी तरह से भिन्न विषय होने चाहिए | दोनों को आपस में मिला कर देखने से ही ऐसी स्थितियां पैदा होती हैं , जो उत्पन्न संतान के विषाद का कारण बनती हैं | यह भी सच है कि अगर एन डी तिवारी की जगह कोई मामूली सा कांग्रेस का कार्यकर्त्ता होता तब शायद रोहित की माँ उस मामूली से आदमी का नाम कभी न लेती और रोहित से कह देती, तुम्हारा बाप तुम्हारे बचपन में ही मर गया था ।
"पर जो भी हो संबंध तो अवैध हो सकते हैं परन्तु संताने कभी नहीं |"
bahut hi marmik rahi aapki yah rachna ..sach me ajanme ka kya dosh .....? yah to aaj ka sabse wada sawal hai .
जवाब देंहटाएंविचारणीय..... ऐसी संबंधों का दंश बच्चों को झेलना पड़ता है..... जो हर तरह से दुखद है....
जवाब देंहटाएंबात ठीक है -मगर दोष तिवारी का ज्यादा है -समझ में नहीं आता उन्होंने रोहित को क्यों नहीं स्वीकार किया ?
जवाब देंहटाएंअस्वीकारने में लाभ अधिक था | स्वीकारते तो पद और सत्ता दोनों जाती | अब उनके पास खोने को कुछ नहीं है |
हटाएंसच कहा बड़ो की गलती की सजा मासूम बंच्चो को ही मिलती है जिसमें उनका कोई दोष नहीं होता...
जवाब देंहटाएंरोहित शेखर के मामले में जितना दोष उसके पिता का है उससे कहीं अधिक दोष उसकी माँ का भी है ,
जवाब देंहटाएंji nahin dono kaa barabar haen
इस कथा के बहुत से अनसुलझे पहलु हैं
जवाब देंहटाएंजैसे शेखर के नाना की अपनी जिन्दगी
उनके राजनीती के दांव पेच पर अपनी बेटी का इस्तमाल अपने फायदे के लिये
बेटी की सौतेली माँ
बेटी के पति के दूसरे सम्बन्ध बेटी के ही मायके में
ये लम्बी लड़ाई थी उस बेटे की जो अपने पिता को नाजायज कहलाना चाहता था जो परिभाषा बदलना चाहता था नाजायज़ शब्द की
और क़ोई भी रिश्ता नाजायज़ नहीं होता हैं अगर वो बिना किसी स्वार्थ के बने .
शेखर की माने तो उसका जन्म तिवारी को संतान देने के लिये एक सुनियोजित साजिश थी अब साजिश थी तो विलेन केवल तिवारी ही नहीं थे
शेखर के सब संबंधी थे जिन्होने उसका आना नियोजित और प्रायोजित किया था अपने अपने स्वार्थ के लिये
नाना का स्वार्थ , नानी का स्वार्थ , माँ का स्वार्थ , तिवारी का स्वार्थ इत्यादि
कितना अजीब हैं नियति का चक्र की निसंतान तिवारी को बच्चा मिला लेकिन सुख नहीं मिला और जिस बच्चे के लिये उन्होने ये सारा खेल रचा वो ही उस खेल को सामने लाया
http://pushymitr.blogspot.in/2012/07/blog-post_27.html
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक लेख ... पर कम अक्ल सोचते नहीं
जवाब देंहटाएंऐसे संबंधो से होने वाले बच्चे ताउम्र ...बिन वजह तकलीफ से गुजरते हैं ...सटीक लेखन का परिचय दिया हैं आपने
जवाब देंहटाएंदोष तो प्रकृति का है, मानव तो उसी के बस में हैं, समाज के नियम काश इतने कठोर न होते।
जवाब देंहटाएंbado ki galti, khushi, dukh, maan, apmaan sabka bojh bacchon ko hi milta hai....prakartik niyam hai...jinhe badalna ho sakta hai lekin us se pahle is samaaj k niyamo ka ulanghan karna padega.
जवाब देंहटाएंदोष तो स्त्री पुरुष दोनों का होता है, जब इस तरह के मामले होते हैं, किसी एक को दोष देना उचित नहीं. तिवारी जी बहुत ही संवेदनशील इंसान है ये तो विपक्षी भी जानते हैं. रोहित की माँ से बिना प्रेम के रिश्ता बना न होगा. हाँ ये अवश्य है कि परिणति में इतनी जगहँसाई होगी इसका अनुमान न रहा होगा. इस सच को सभी जानते थे कि तिवारी जी का ही बेटा रोहित है, ऐसे में इतना तमाशा करना ही नहीं चाहिए था. तिवारी जी खुद स्वीकार कर लेते तो अच्छा था. परन्तु चुकी रोहित की माँ विवाहित थी और परिस्थितियाँ संदिग्ध थीं तो उनके बेटे को अपना बेटा मानना तिवारी जी के लिए भी कठिन रहा होगा. इस लिए इस डी.एन.ए टेस्ट से ये साबित हुआ कि तिवारी जी का ही बेटा है, ऐसे में अब शक कि कोई गुंजाइश न रही. एक बात और है कि इस घटना से अन्य नेता कुछ तो सबक लेंगे.
जवाब देंहटाएंविशुद्ध प्रेम और सम्बन्ध को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है .समय-समय पर ये खुद ही खुल कर बता देते हैं..फिर इस पर क्या विमर्श..?
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