वाशिंग मशीन में आज कपडे गोल गोल नाच रहे थे और निम्न विचार मेरे मन में :
वाशिंग मशीन में सब कपडे आपस में कितने प्यार से गलबहियां करते हैं और उन्माद में नाचते रहते हैं | जबकि वे सब जानते हैं कि अंत में उन्हें निचोड़ा भी जाएगा और दर्द भी होगा | जिससे जिस्म पर सलवटें भी पड़ेंगी परन्तु दाग छुडाने को वे इतनी पीड़ा भी सहने को तैयार रहते हैं | किसी कपडे का किसी दूसरे से कोई बैर नहीं | जींस अपनी दोनों बाहें फैलाए समेट लेती है शर्ट को , शर्ट के बटन में मोजा किलोल करता रहता है | तौलिया अपना बड़प्पन दिखाते हुए रुमाल को अपने आगोश में भर लेती है | "वीआईपीफ्रेंची" टाइटेनिक की तरह कभी एक ओर से कभी दूसरी ओर से डूबने उतराने के प्रयास में बड़ा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करता है | सभी कपड़ों में न किसी धर्म का बैर न किसी सम्प्रदाय का , न कोई लिंग भेद न कोई वर्ण भेद | सब आपस में मिल कर एक दूसरे का दाग छुड़ाने में मददगार ही साबित होते हैं | यहाँ तो जो कमजोर वर्ण का होता है वही सब पर अपना रंग छोड़ देता है | यहाँ दबंग बे असर होता है |
धोबी के यहाँ तो सभी वर्गों और धर्मों के कपडे सामूहिक रूप से एक साथ धुले जाते हैं ,कहीं कोई भेदभाव नहीं ।कोई भी वस्त्र किसी भी वस्त्र के साथ जुगलबंदी कर लेता होगा धुलने ,सूखने और निचुड़ने में |
"जब कपडे आपस में कोई बैर , भेद नहीं करते और साथ साथ पीड़ा सह कर बेदाग़ होने को तत्पर रहते हैं ,तब उन्हें पहनने वाले उनकी तरह व्यवहार क्यों नहीं कर सकते !"
इंसानों को भी निचोड़ कर,धूप में,तार पर,क्लिप से दबोच कर कुछ घंटों लटका दिया जाए तो शायद उन्हें भी अक्ल आ जाए...
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अनु
' समय ' गाहे बगाहे इंसानों की धुलाई करता रहता है , बस समझने का फेर है |
हटाएंहमारी टिप्पणी???????????
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंड्रायर में चली गई थी आ गई ऊपर |
हटाएंऊपरी पंक्तियाँ पढकर हंसी आ रही थी ..फिर आखिरी पंक्तियाँ गंभीर सन्देश गईं.
जवाब देंहटाएंउद्देश्य तो हंसी ही लाना रहता है , सन्देश तो आप गुणी जन स्वयं निकाल लेते हैं |
हटाएंबढ़िया संदेश!!
जवाब देंहटाएंअहा, आनन्द आ गया, नया सा, मनभाया सा...कहाँ से ले आते हैं आप यह दृष्टि..
जवाब देंहटाएंआपकी हर पोस्ट मे हास्य के साथ संदेश भी रहता है सर!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट।
सादर
बैर , भेद ये सब भाव इंसानी दिमाग की उपज हैं, कपड़ों का क्या है बेचारों को धोया, निचोड़ा और सुखाया हो गए निर्मल. इंसानों का क्या किया जाये?? रोचक प्रस्तुति... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंkuch alag hat ke .post rochak prastuti , badhai
जवाब देंहटाएंवाह: कपड़ों की सुन्दर गलबहियां है..बढ़िया संदेश!!
जवाब देंहटाएंसुंदर बहुत सुंदर, जड़ पदार्थ में भी भावनाएं जगा ही आपने
जवाब देंहटाएंसुंदर
आज का फेमस स्लोगन भी तो लाईफ में अपनाना पड़ता है -' दाग अच्छे हैं '
जवाब देंहटाएंसभी कपड़ों में न किसी धर्म का बैर न किसी सम्प्रदाय का , न कोई लिंग भेद न कोई वर्ण भेद
जवाब देंहटाएंकौन कहता है सहजता से गंभीर बात नहीं कही जा सकती
ACCHI PRASTUTI...
जवाब देंहटाएंCHOTE SE MADHYAM SE GAMBHIRATA KA SANDESH.....
ACCHA PRAYAS
http://yayavar420.blogspot.in/
जय हो महाराज ...
जवाब देंहटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
वाह वाह वाह....अद्भुत कल्पनाशीलता झलकती है आपकी रचना में .....सही मायने मे आप कवि के साथ साथ रवि की भी भूमिका निणा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमै अपना सौभाग्य मानता हूँ जो श्री अनूप शुक्ला जी की चिट्ठा चर्चा के माध्यम से आपके ब्लॉग का पता पाया।
क्षमा कीजियेगा.....निणा=निभा पढ़ा जाय
जवाब देंहटाएंवाह ...बिल्कुल नये तरह से सार्थक बात कही ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
अनूपजी ने आपके ब्लाग की प्रशंसा की थी और यह झूठी नहीं है। अच्छा चिंतन है। आप बस फाण्ट बड़े कर दें जिससे पढने में कठिनाई ना हो।
जवाब देंहटाएंआभार आपका | 'कंट्रोल' के साथ 'प्लस' दबाएँ , फांट बड़े हो जायेंगे और पढने में असुविधा नहीं होगी |
हटाएंइससे बेहतर यही होगा की आप फॉण्ट का साइज़ बड़ा कर देंवे... आभार.
हटाएंनहीं अमित जी .......यहाँ भी रंग भेद की नीति रहती है ...सफ़ेद कपड़े पहले और रंगीन बाद में धोए जाते हैं .....
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