शनिवार, 14 जुलाई 2012

" ख़ुशबू बिखर जाए उनकी......."



वो मुस्कुरा दें बस इतनी सी चाह है ,

अपने आंसुओ से बचने की कहाँ कोई राह है |

वो पलकें उठा दे बस इतनी सी चाह है ,

खुली आँखों से सपने देखने की यही एक राह है |

वो लब खोल दे, दो बोल बोल दें , बस इतनी सी चाह है ,

सन्नाटे के शोर से बचने की यही एक राह है |

प्यार न सही दुश्मनी ही सही,

वो करें जो भी दिल से करें , बस इतनी सी चाह है ,

अपने दिल को रोकने की कहाँ कोई राह है |

ख़ुशबू बिखर जाए उनकी मेरे जीवन में ,

बस इतनी सी चाह है ,

फूल दामन में भर लूँ ऐसी कहाँ कोई राह है |

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर............
    हर चाह को राह होती है....

    अनु

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  2. हर प्यार की मंजिल तय हैं
    हर चाह की एक राह तय हैं
    फिर क्यों सोंचे ,क्या हुआ
    और कैसे हुआ
    जो हुआ वो होना तय था पहले सी ही |

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  3. "प्यार न सही दुश्मनी ही सही,
    वो करें जो भी दिल से करें ,
    बस इतनी सी चाह है ,"

    एक यही बात है जो तुमसे की नहीं जाती..
    प्यार क्या दुश्मनी भी ठीक से की नहीं जाती !

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  4. अपने दिल को रोकने की कहाँ कोई राह है ...

    बहुत कोमल भावनायें...और सुंदर अभिव्यक्ति भी ...
    शुभकामनायें.

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  5. जहाँ चाह है
    वहां राह है
    खूबसूरत अहसास... शुभकामनायें

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  6. बहूत सुंदर चाह है
    बहूत बढीया भावमय करती रचना
    चाह पुरी हो :-)

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  7. अपने दिल को रोकने की कहाँ कोई राह है |मन की आँखे खोलो राह ही राह है...

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  8. ab to tareef ko shabd bhi nahi bache ...har baat ka adhurapan kisi ek khas ki jara si baat se poora ho jata hai...behad rumani sufia khayal :-)

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