रविवार, 22 जुलाई 2012

"एक सावन ऐसा भी हो..........."



आओ सजनी सजा दूँ तुझे,
हाथों में मेहँदी लगा दूँ तुझे,

उलझी जुल्फें सवांर दूँ,
कान पे लट निकाल दूँ ,

मूँदे रखना ज़रा नयन अपने,
कजरारी पलकें निखार दूँ ,

लगाऊं कुमकुम माथे पर,
सिन्दूर से मांग संवार दूँ ,

ये गाल में बनते गड्ढे तेरे,
डिठौना इन पे वार दूँ ,

आज बन जाऊं मनिहार तेरा,
तू लाज शर्म सब छोड़ दे ,

लचकाऊ तेरी गोरी कलाइयां ,
हरी हरी चूड़ियाँ उनमे डाल दूँ ,

लब थाम ले साँसे रोक ले,
लबों पे लाली तो लगा दूँ ज़रा,

पायल पहनाऊं अपने हाथों से ,
पर बोल उनके निकाल दूँ ,

जब सजा लूँ तुझे ,
फिर जी भर देखूं तुझे ,

और तुझ पे इतराते हुए,
अपने बाहों की माला तुझ पे डाल दूँ ,

फिर झुलाऊं तुझे अपनी बाहों में ,
और यूं ही जीवन तुझ पे वार दूँ ।

                                             "एक सावन ऐसा भी हो "

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.......
    एक क्यूँ....हर सावन ऐसा ही हो....

    सादर
    अनु

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  2. अहा,
    सावन तुझे सँवार दूँ, प्रियतम के हरे भरे मन से।

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  3. बहुत सुंदर .... यह सब करना तो आपके हाथ में है :)

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  4. हर सावन ऐसा ही होना चाहिए..मनमोहक सुन्दर सजी धजी सी खुबसूरत रचना...

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  5. एक शेर याद आ गया ..
    हजारों ख्वाईशें ऐसी कि हर ख्वाइश पे दम निकले :).

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  6. सपनो का सावन तो ऐसा ही हो , कि कभी हकीकत भी हो !
    बहुत सुन्दर !

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  7. बहुत सुन्दर मनभावन सावन..
    मीत की प्रीत से रंग जाये मोरा मन..
    बहुत सुन्दर रचना..
    :-)

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  8. एक नहीं सब सावन ही ऐसा हो..सुंदर सावन..

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  9. सावन के मौसम में प्रेयसी का अच्छा श्रिंगार क्या बात हैं ..

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