गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

सिंगापुर....

आज यहां दस दिन हो गए आये हुए। यह भी कोई देश है, न कोई शोर न हल्ला गुल्ला। सड़क पर हॉर्न कोई बजाता ही नही, क्या शो के लिए भोंपू लगा रखा है स्टीयरिंग पर।

सड़क भी पार करते है तो चींटियों की तरह कतार में। अरे भई आदमी हो झुंड में चलो, हाथ देकर किधर से भी निकल जाओ किसी के सामने से।

सड़क में और कांच में कोई फर्क ही नही, पतंजलि वाला न कोई गोबर ,न गोमूत्र ,न कोई गाय, न भैस ,न कुत्ता सड़क पर। यह बिना बछिया दान किये बैकुंठ तो जाने से रहे। चलो इसके चलते बैकुंठ में हम लोगों की सीट तो पक्की है।

पेड़ पौधे इतने उगा रखें है जैसे जंगल मे रहते हों। फ्लाई ओवर के खंभों पर वर्टिकल गार्डन चिपका रखा है। यह नही कि उसी पुल के नीचे फल, सब्जी का डेरा जमा दें। इन लोगों को अक्ल जरा भी नही कि आम पब्लिक प्लेस पर कब्जा कैसे करते हैं।

जान न पहचान , मिलने पर यूँ हँस कर हलो बोल देते है लगता है हम इनके रिश्तेदार ठहरे। एक हम लोग है कि जान पहचान वाले को भी देख कर कन्नी काट जाते है।

आपसे आगे जाने वाला बन्दा लिफ्ट हो , मॉल हो, रेस्तरां हो,आपके लिए डोर खोले रुक जाएगा।  अरे मजा तो तब आता जब वो भड़ाक से दूसरे के मुंह पर दरवाज़ा छोड़ दे।

पुलिस इतने दिनों में दिखी ही नही। पता चला सब अंडर कवर रहते हैं ,मतलब किस भेस में भगवान मिल जाये पता नही।

मैं तो अभी सड़क के किनारे खड़ा माथे पर आई पसीने की बूंद भी नीचे छिड़कने से डर रहा कहीं इनका शीशा मैला न हो जाए।

देशभक्ति का जज़्बा इतना कि बारहवीं की पढ़ाई के बाद लड़कों के लिए दो साल की मिलट्री ट्रेनिंग अनिवार्य है। जिसे देखो वही एकदम फिट फाट दिखता।

न कोई दंगा न कोई फसाद , रोड जाम, न चक्का जाम।यहां के लोगो का और पत्रकारों का ,मीडिया का मनोरंजन कैसे होता होगा। सब के सब एकदम बोर है। कोई इनोवेशन नही। क्या तरक्की करेगा यह देश।

बेटे के अपार्टमेंट में नीचे एंट्री पर कांच का डोर लगा है। वह अपने आप बन्द हो जाता, या तो कार्ड हो आपके पास नही ,तो वही डायलर है उससे फ्लैट नंबर डायल करो, बेटा अपने मोबाइल पर  कॉल अटेंड करेगा,कहीं भी हो, और डोर एक बटन मोबाइल पर ही दबा कर खोल देगा।

अब जो मजा नाम लेकर , चिल्ला कर दरवाजा खुलवाने में है या घण्टी बजाने में है, वो लुत्फ तो मिस हो गया न।

टैप वाटर ही ड्रिंकिंग वाटर है। उसी से नहाओ धोओ वही पियो ,छी छी, न आरओ न फ़िल्टर , कित्ता पिछड़ा देश है।

अभी अभी केला खाने का मन हुआ पर टाल गये, एक बार देख तो लें, यहां के लोग छिलके सहित खाते कैसे हैं केला ,क्योंकि कूड़ा देखने को तरस गये हम तो कहीं भी।

जल्दी लौटते हैं ,यहां रह गए तो बीमार होना तय।

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