सोमवार, 30 अप्रैल 2012

" स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे......."



उस रात,
काजल लगी,
आँखों से,
जो एक आंसू,
टपका था तुम्हारा,
मेरे काँधे पे,
वक्त के साथ,
आंसू तो सूख गया,
पर काजल का,
वो एक कण,
ठहरा हुआ है वहीं,
अब भी,
मेरे काँधे पे,
बन एक तिल छोटा सा,
रखता हूँ जब कभी,
हथेली उसपे,
लगे रूह में जैसे,
उतर आई हो तुम । 

19 टिप्‍पणियां:

  1. वो तिल रिज़र्व रखेगा कांधा,
    उसके लिए,
    जिसने कभी आँसू बहाए थे,कजरारी आँखों से......

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  2. ओह..बहुत गहरे अहसास होते हैं आपकी कविता में .

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  3. गहरे एहसास ...एक वो कंधा जहाँ ..ये जहान भी रुकने को बेताब हैं

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  4. आंसू तो सूख गया,
    पर काजल का,
    वो एक कण,
    ठहरा हुआ है वहीं,

    खूबसूरत......!!

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  5. जीवन को अर्थ देते एहसास .....
    दर्द जीती कविता ....
    बहुत ही सुंदर ....!!
    शुभकामनायें ...

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  6. बहुत ही गहन भाव लिए मर्मस्पर्शी रचना...

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  7. बहुत ही बढिया लिखा है आपने ...
    कल 02/05/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ...'' स्‍मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...

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  8. स्मृति कण को रूह की तरह महसूस करना... नमन है आपकी लेखनी को... अनूठा अहसास

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  9. मेरे काँधे पे,
    बन एक तिल छोटा सा,
    रखता हूँ जब कभी,
    हथेली उसपे,
    लगे रूह में जैसे,
    उतर आई हो तुम ।

    वाह अमित जी बहुत ही भावभीना ।

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  10. bahut hi khoob surati ke saath apne dil ke jajbaaton ko apni lekhni ke jariye uker diya hai aapne
    bahut hi aatmiy ahsaas
    poonam

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  11. .

    लगे
    रूह में जैसे
    उतर आई हो तुम …


    प्रिय की छोटी-सी निशानी भी बहुत बड़ा सम्बल है…

    …और कांधे पर काजल के कण का उदाहरण इससे पहले कहीं ध्यान में नहीं आया …
    सुंदर बिंब !
    अमित श्रीवास्तव जी
    सुंदर कविता !

    आभार !

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