इस शहर का हर शख्स,
मुझे क्यूँ अच्छा लगे है |
आबो-हवा में बस,
बसता यहाँ प्यार ,
कहना उसका आज,
सच सच्चा लगे है |
हवाओं में घुली है ख़ुशबू,
उसकी हर ओर,
यही सोच सोच बस मन को,
यह शहर अपना लगे है |
इसी शहर में हुआ था प्यार,
उस से इस कदर,
कि हर सूरत यहाँ तो,
बस उसकी सी लगे है |
पता नही कहाँ,
गुम गई है अब वो,
झुरमुट में वक्त के |
दीदार होगा फिर ज़रूर,
बस यही सच्चा लगे है |
" उस ख़ुशबू को समर्पित जो अक्सर उठती थी जिस्म से उसके ,भीगने के बाद आंसुओ में,
जैसे उठती हो ख़ुशबू मिटटी की सोंधी सी, पहली बारिश के बाद | "
अपनेपन का दरिया जो बहा इस शहर से..
जवाब देंहटाएंभीनी भीनी खुशबु लिए ...एहसासों की चाशनी में पगी...सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंसोचती हूँ इसे रचना भी कहूँ कि नहीं...
सादर.
कल 30/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर..!
जवाब देंहटाएंसादर.
पता नही कहाँ,
जवाब देंहटाएंगुम गई है अब वो,
झुरमुट में वक्त के |
दीदार होगा फिर ज़रूर,
बस यही सच्चा लगे है |
.यही कसक तो मन को टीस जाती है ..
बहुत सुन्दर सार्थक रचना
beautiful :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....मैं भी नया नया ब्लोगेर हूँ ..कृपया मेरा भी कविता पढ़ा दोस्तों www.shabbirkumar.co.cc
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट पढ़कर जगजीत सिंह और आशा भोसले जी दवारा गाया हुआ यह गीत याद आगया
जवाब देंहटाएंकहीं कहीं से हर चहरा तुम जैसा लगता है
तुमको भूल न पाएंगे हम्म ऐसा लगता है .....
सुंदर शहर अपना सा ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..
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