तुम जब लिखते हो,
दर्द,दिल,आंसू,
इश्क,मोहब्बत,
यादें,लम्हे,
और कभी,
नजदीकियों के बारे में,
महसूस भी करते होगे ,
उन्हें अपने भीतर,
कुरेदते होगे खुद को,
भीतर तक,
या बस यूँ ही ,
उलीच देते हो ,
सारी कश-म-कश,
बिना फ़िक्र के मेरी,
जितनी चाहत,
की चाशनी लिपटी है,
तुम्हारे हर्फों में,
कभी लफ़्ज़ों में,
होती ,
काश !
मै तो बस रह गई,
मसोसती मन अपना,
जो लिखता इतना सब है,
मौन क्यूँ रहा,
ताउम्र मेरी.......??
.
.
.
क्या करता,
कहा था मैंने,
निगाहों निगाहों में,
कई कई बार,
दिल मचल मचल कर ,
चीखा था कई कई बार,
कदम बढ़ बढ़ के लौटे थे कई बार,
कलेजे में जो हूक सी,
उठती थी न तुम्हारे,
उठती थी न तुम्हारे,
वो मेरे बोल ही तो थे ,
पर मेरा कहा ,
सब अनसुना रह गया,
और लिखा मेरा आज,
लगे तुम्हे शायद,
स्क्रिप्ट किसी 'नाट्य' का ।
वाह अमित जी...........
जवाब देंहटाएंसच है किसी कवि का कहा/लिखा कौन सच मानता है..............
या वो कहाँ सच होता है.....!!!!
सुंदर भाव. ..
अनु
"सब अनसुना रह गया,
जवाब देंहटाएंऔर लिखा मेरा आज,
लगे तुम्हे शायद,
स्क्रिप्ट किसी 'नाट्य' का ।"
Confidence gadbadaya huaa kyon hai jee? :)
कवितायेँ तो बहुत लिखते हो......."
जवाब देंहटाएंया बस यूँ ही ,उलीच देते हो ,
सारी कश-म-कश, बिना फ़िक्र के .....
दूसरों को क्यों लगता ऐसा ..... ????
जरुरी नहीं कि सब कुछ कवि के जीवन में घटित हुआ हो लेकिन महसूस करता है वह, और यही सब शब्द बनकर कविता में ढल जाता है ...सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंमौन को पढ़ा तो होता सुना तो होता .... निगाहों निगाहों में,
जवाब देंहटाएंकई कई बार,
दिल मचल मचल कर ,
चीखा था कई कई बार,
कदम बढ़ बढ़ के लौटे थे कई बार,
कलेजे में जो हूक सी,
उठती थी न तुम्हारे,
वो मेरे बोल ही तो थे ,
पर मेरा कहा ,
सब अनसुना रह गया,
सच के नये मानक गढ़ने के लिये जाना जाता है कवि, यदि कहना चाहे तो।
जवाब देंहटाएंsundar prastuti....kavi sirf apne hi nahin dusro ke bhavo ko bhi kavita mein dhal sakta hai...lekin haan likh sirf vahi sakta hai jo un bhavo ko mahsus bhi kar sake fir chahe vo kisi aur ke man ke bhav hi kyon na ho..
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