कितना बेबस,
ये तकिया,
सपनो की मौत,
होते देखता रोज़,
पर उसके बस में,
कुछ भी नहीं ।
कुछ सुकून पाता तो है,
दिलों से लिपट कर,
और खुद को,
भिगो भी लेता है अक्सर ।
कितने फूल देखे सिरहाने उसने,
इत्र और खुश्बू से,
सराबोर हुआ कई बार ।
मगर हिस्से आयी,
तन्हाई ही अक्सर ।
कभी तो दो दिलों को,
सुलाया भी ,रुलाया भी,
एक ही साथ |
और कभी,
ये तेरा वो मेरा का,
हुआ चश्मदीद गवाह ।
इससे तो अच्छी,
किस्मत चादर की,
किस्मत चादर की,
दुःख तो नही देखा,
बंटवारे का ।
बंटवारे का ।
तन्हाई ही अक्सर,
जवाब देंहटाएंकभी तो दो दिलों,
सुलाया भी ,रुलाया भी,
मन की बात बताती समझाती पंक्तियाँ .....उम्दा प्रस्तुति .....
वाह.!! बहुत खूब लिखा है!
जवाब देंहटाएंपर क्या सचमुच हर सपने की मौत होती है ..
सपने सच भी ओ होते हैं
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ..जय हिंद !!
kalamdaan.blogspot.com
कुछ अनकहा सा लिखा आपने...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
बहुत खूब ... तकिया गवाह है टूटे सपनों का ... उम्दा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...
गजब के भाव।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद... वंदे मातरम्।
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन ॥मैंने भी कुछ ऐसा ही लिखा है समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://aapki-pasand.blogspot.com
हम्म तकिया...बहुत कुछ कह दिया आपने.
जवाब देंहटाएंएक अदद तकिये की दरकार हर किसी के लिए जरूरी है...दिल की भड़ास निकालने के लिए तकिये की पिटाई भी की जाती है...
जवाब देंहटाएंकोमल भावो की अभिवयक्ति.....गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंरोज सोने के पहले हिसाब लेती है सपनों का..
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन लेखन...
बहुत बढ़िया.......
जवाब देंहटाएंकविता का अस्तित्त्व खतरे में नहीं है .... बस टाकिया को पुल्लिंग के रूप में प्रयोग करें ... बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंसंशोधन कर दिया , आभार आपका ।
हटाएंबहुत सुन्दर!
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