राजनैतिक दल के चुनाव-चिन्ह वाले सभी बुत ढक दिए जायेंगे | गोया कहीं बुत खुले रह गए तो वे मतदाताओं को आवाज़ लगा लगा के अपने पक्ष में बहला फुसला न लें | काम युद्ध स्तर पर शुरू कर दिया गया है | ठण्ड भी बहुत है | इन पर कपड़ा लपेटने वाले मजदूरों को देखें ,उनके तन पर ठीक से मोटा कपड़ा भी नहीं है कि वे ठण्ड से बच सके और आदेश ऐसा कि पत्थरों के बुत को मोटे कपड़ों में लपेटा जा रहा है | ठीक भी है, आचार संहिता का उल्लंघन कतई न हो , भले ही मानव-संहिता की अनदेखी हो जाए |
इन स्मारकों के बगल से गुजरने पर पहले इनकी ओर ज़रा भी ध्यान नहीं जाता था ,परन्तु अब ढके होने बाद कोई भी कौतूहल वश अवश्य पूछेगा कि ,परदे के पीछे क्या है ? और जो मकसद आयोग का रहा होगा ,इसे अनुपालित कराने में, वह पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगा | यह कार्यवाई तो अनायास ही भावनाओं को उद्वेलित करने वाली हो गई |
एक बुत को लपेटने में जितना कपड़ा लग रहा है ,उतने में पचास गरीब आदमी अथवा सौ से अधिक निर्धन बच्चों को कपड़ा मयस्सर कराया जा सकता है , और ऐसे सैकड़ों बुतों को कपड़ों में लपेटा जा रहा है |
हाँ! कपड़ा आपूर्ति करने वाली एजेंसी अवश्य मुदित फलित होगी ऐसा काम पाकर ,और मन ही मन अफ़सोस भी कर रही होगी कि "चुनाव-चिन्ह डायनासोर क्यों न हुआ ? "
क्या कहा जाये..अंधेर नगरी चौपट राजा.वाला हाल हो गया है देश का.
जवाब देंहटाएंखयाल अच्छा है !
जवाब देंहटाएंजाने ....आगे और क्या -क्या होना बाकी रह गया है ,सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंपहले तो इन मूर्तियों को खडा करने दिया गया और अब उन्हें ढांपने की जुगाड हो रही है, कल उनको ढहाने की भी होगा और गरीब जनता का पैसा इसी तरह पानी में बहा दिया जाएगा॥
जवाब देंहटाएंचुनाव चिन्ह आम आदमी होना चाहिये। सब ढंक जाते जाड़े में।
जवाब देंहटाएंवो कहा जाता है ... बेकारी से बेगारी भला..
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंin rajnetao ka kuch nahi ho sakta ........dil me kuch javan par kuch :)
हटाएंक्योंकि नेता को वजूद का ख़तरा सता रहा था ! :)
जवाब देंहटाएंआज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सही चिंतन
जवाब देंहटाएंहर तरफ से जनता की ही बजनी है...
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