शनिवार, 6 नवंबर 2010

नए ब्लॉगर का दर्द

                मन सदैव चंचल और गतिमान रहता है,कुछ ना कुछ सोचता रहता है, थोड़ा बीते हुए समय पर,थोड़ा आने वाले पलों के बारे में।इन्हीं विचारों को अन्य लोगों से शेयर करने से मन हल्का हो जाता है और फ़िर कुछ नया सोचने के लिये पुनः तैयार हो जाता है।कम्प्यूटर युग से पहले डायरी लिखने की परम्परा थी।लोग अपने विषय में तमाम निजी बातें भी लिख मारा करते थे,जिनसे उनके बाहरी और वास्तविक व्यक्तित्व के अंतर का पता चलता था।पर अब इसका स्थान web-log यानि blog ने ले लिया है।डायरी लेखन में यह आवश्यक नही था कि वह हमेशा सार्वजनिक ही होगी पर बलॉग तो सार्वजनिक होगा, यह तय जानकर ही लिखने वाले अपना कौशल उजागर करना चाहते हैं।बस यहीं मात खा जाती है बलॉगिंग,क्योंकि फ़िर लोग सच बयानी कम और अपने लेखन की टी.आर.पी. ज्यादा ध्यान में रखते  हैं।
                  पर एक नया बलॉगर (मेरे जैसा) बेचारा क्या करे।जब भी कुछ लिखो,लोग पढ़ते ही थोड़ा खिसिया कर सोचते हैं कि साला यह तो पढ़ा लिखा लगता है,फ़िर अंजान बनते हुये कमेंट मारेंगे "कहां से टीपा भाई"।अब कैसे समझाएं भैया कि लिखा तो हमने खुद ही है।तब वे सारा दिमाग यह सोचने में लगाते है कि कैसे भी इसका स्रोत ढ़ूंढा जाय,जहां से टीपा गया है ताकि पोल खोली जा सके।पुराने ब्लॉगर (time wise) या कहें, मंजे हुए ब्लॉगर कुछ भी लिख दें, उस पर कमेंट की झड़ी लग जाती है या लिखने वाली कन्या राशि की हो फ़िर क्या कहने साहब ,फ़िर तो मूल लेखन का अता पता नही चलेगा ।केवल कमेंट को एक साथ पढ़ कर देखिये ,कविता सी लगेगी, शर्तिया।
                   अभी कुछ दिनों पहले ही मैने जाना कि ब्लॉगर्स की भी रैंकिंग होती है टेनिस प्लेयर्स की तरह।मैने भी शीर्ष क्रम के महानुभाव से थोड़ी जान पहचान बनाई और उनके सभी ब्लॉगों की (पढ़े-अनपढ़े सब) जमकर तारीफ़ की।फ़िर कभी धीरे से उनसे निवेदन किया कि कभी थोड़ा समय निकालकर हमार ब्लॉग भी पढ़िये और कुछ सुधारात्मक टिप्पणी दीजिये,लेकिन यह क्या ,उनकी प्रतिक्रिया ऐसी थी,जैसे हमने आई.आई.टी. के मास्टर से प्राइमरी स्कूल के बच्चों की कॉपी जांचने को कह दिया हो।पुराने,जमे हुए, मंजे हुए या मजे लिये हुए ब्लॉगर्स को, नयों को प्रोत्साहित करना  चाहिये और यदि कहीं भाषा अथवा विचार असंसदीय हो रहे हों तो आपत्ति भी करनी चाहिये।
                   खैर कुछ भी हो, मैं तो जो कुछ भी मन मे आएगा इसी तरह तरह कम्प्यूटर स्क्रीन पर उड़ेलता रहूंगा,चाहे आप बड़े लोग  इसे समेटे अथवा बिखेरें।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आप लिखते रहिए। लिखते-लिखते पहचान बनेगी। सास भी कभी बहू थी। आखिर हम भी कभी नए थे।

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  2. Boss mein padhta hoon, aur poori tarah jaan ke padhta hoon ki yeh kanya rashi ka nahin hai.

    AUR MUJHE ACHHA LAGTA HAI.

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  3. दीपक साहब,द्विवेदी सर,उपेंद्र जी और मेरे अधीर, आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया,टाट-पट्टी स्कूल के विद्यार्थी की कॉपी जांचने के लिये समय निकाल पाने के लिये ।

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  4. या लिखने वाली कन्या राशि की हो फ़िर क्या कहने साहब
    हाहा

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  5. .
    .
    .
    प्रिय अमित श्रीवास्तव जी,

    द्विवेदी सर बहुत सही कह रहे हैं... लिखते रहिये... जम कर लिखिये... और किसी से भी प्रतिक्रिया, टिप्पणी या प्रोत्साहन की याचना न करिये... असली ब्लॉगर बनिये, नेटवर्किंग का खिलाड़ी नहीं... मेरी शुभकामनायें।

    आभार!


    ...

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  6. इंदु जी एवं प्रवीण शाह साहब बहुत बहुत आभार......।

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  7. बस यहीं मात खा जाती है बलॉगिंग,क्योंकि फ़िर लोग सच बयानी कम और अपने लेखन की टी.आर.पी. ज्यादा ध्यान में रखते हैं।
    amazingly true

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  8. पुराना ब्लॉगर घाघ हो जाता है। टिपियाने में नखरे करता है। वैसे अब तो तुम भी हो लिये काफ़ी पुराने। :)

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