शुक्रवार, 15 जून 2012

" एक हादसा जो हुआ ही नहीं........"



शीर्षक से स्वतः स्पष्ट है कि मैं ऐसे हादसे का जिक्र करने जा रहा हूँ , जो वास्तव में घटित ही नही हुआ परन्तु उस संभावित हादसे की पीड़ा मैंने भरपूर महसूस की | ऐसा बहुत कम ही होता है कि जल्दीबाजी में मुझसे कोई सामान , कागज़ , पर्स ,चश्मा या आवश्यक दस्तावेज़ कहीं छूट जाएं या मैं रखकर भूल जाऊं | आज आफिस जाने के लिए निकला , तब भी लगभग रोज़ की तरह सभी न्यूनतम आवश्यक वस्तुओं से लैस होकर ही निकला था | कार में पेट्रोल डलवाना था सो पहले पेट्रोल पम्प पर गया | वहां से पेट्रोल डलवाकर मन ही मन मनमोहन सिंह को कोसते हुए और अपने पर्स में बचे मनमोहन सिंह को मन ही मन में गिनते हुए और 'एफ. एम.' पर चिकनी चमेली गाना सुनते हुए चला जा रहा था | चूंकि मै आफिस प्रायः समय से पहुँचता हूँ अतः जब कभी भी १०/१५ मिनट की देर हो जाए, तब कोई न कोई मिलने वाला , जो वहां प्रतीक्षारत होता है , मुझे फोन कर पूछ ही लेता है | आज मुझे पेट्रोल लेने में लगभग आधा घंटा देरी हो गई परन्तु रास्ते भर मेरे मोबाइल की घंटी नहीं बजी | मुझे लगा शायद वो भी चिकनी चमेली गाने के आनंद को कम नहीं होने देना चाहता होगा | मेरे घर से मेरे आफिस की दूरी एफ.एम. के दो गाने बराबर की है | एक और कोई नया सा गाना था , उसे सुनते सुनते मैं आफिस पहुँच गया |

लगभग एक घंटे बाद मुझे किसी से कोई आफीशियल सूचना लेने के लिए फोन करना था | मैंने अपने असिस्टेंट से कहा , जरा फोन मिला कर बात कराओ मेरी ,इसपर वो बोला ,सर फोन ( लैंड लाइन ) तो डेड लग रहा है | मैंने कहा ,कोई बात नहीं , मोबाइल से मिलाता हूँ | पर यह क्या , मोबाइल तो मेरे पास था ही नहीं | एकदम से मैं परेशान हो उठा कि मैंने कहाँ छोड़ दिया, अपना मोबाइल आज | सबसे पहले तो दिमाग में उसकी कीमत याद आई कि , वह था कितने का | फिर सोचा  न मिलने पर कौन कौन से नंबरों से हाथ धोना पडेगा | अब चूंकि सरकारी फोन था सो सोचा कि अब तो एफ. आई. आर. भी करानी पड़ेगी | कभी यह भी लग रहा था कि शायद पम्प पर छूट गया हो ,शाम को देख लूंगा | यहाँ तो सब ठीक था | पर अचानक एक सिहरन सी हुई और लगा शायद मोबाइल आज घर पर ही छूट गया | अब मेरी हालत देखने और समझने वाली थी | अब तक ३ घंटे से अधिक हो चुके थे | अगर फोन घर पर छूटा होगा तब, अब तक उसपर कई काल्स आ भी चुकी होंगी | हो सकता है 'घर' से मुझे बताने की कोशिश भी की गई हो पर मेरे आफिस का लैंड लाइन फोन तो खराब था |

अब मेरे दिमाग में केवल और केवल यह चल रहा था कि उस मोबाइल पर कौन कौन सी काल्स आई होंगी | 'घर' पर अटेंड किया गया होगा या यूं ही बजने को छोड़ दिया गया होगा|'किसने 'घर' से कौन सी बात की होगी | ऐसा कोई मामला सीरियस तो नहीं था पर बात का बतंगड़ बनने के पूरे चांसेज थे | अब तक मैं लगभग निश्चित हो गया था कि यार, आज हो गया एक हादसा | फिर भी मैंने अनेक लोगों को ,फोन किसी और के फोन से कर, बता दिया था कि आज मैं मोबाइल घर पर भूल आया हूँ शायद , अतः फोन मत करना | "पर दुर्घटना होने के लिए तो एक ही काल बहुत है" | अब मैं मन ही मन कल्पना कर रहा था कि ऐसी  स्थिति में हादसे कितने प्रकार के हो सकते हैं :

मोबाइल कहीं छूट जाए----हादसा ।
मोबाइल घर पर छूट जाए ----बड़ा हादसा ।
मोबाइल घर पर छूट जाए और आप जब लौट कर घर पहुंचे ,सारी काल्स डिलीटेड मिलें ----बहुत बड़ा हादसा ।
मोबाइल घर पर छूट जाए और आप जब लौट कर घर पहुंचे ,सारी काल्स अटेंडेड मिलें ----भूचाल ।
मोबाइल घर पर छूट जाए और आप जब लौट कर घर पहुंचे ,सारी काल्स अटेंडेड मिलें  और 'घर' म्यूट मोड पर मिले --------ज़लज़ला ।

यह सब सोच कर मैं बहुत ही परेशान हो चुका था और मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि भगवान ,मेरा मोबाइल कहीं भी छूटा हो पर घर पर न छूटा हो ।अरे आर्थिक नुकसान की तो भरपाई हो जायेगी पर जो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा  उसकी भरपाई मैं इस जनम में तो नही कर पाऊंगा । भगवान को याद करते करते शाम को लौटते समय पहले पेट्रोल पम्प पर गया । वहां पूछने पर वहां का अटेंडेंट  बोला, आपका मोबाइल भला यहाँ कैसे छूट सकता है । आप पैसे तो पचास  बार गिन कर देते हैं । उसके बाद पर्स जेब में रखकर दस बार अपनी जेब बाहर और भीतर से टटोलकर कन्फर्म करते हैं कि पर्स अपने स्थान पर पहुँच गया कि  नहीं । ऐसे आदमी का मोबाइल  भला कैसे छूट सकता है ।मैं मन ही मन में उसे कुछ उलटा पुलटा  बुदबुदाते हुए वहां से धीरे से अपनी कार तक पैदल ही खिसक लिया ।अब यह लगभग तय हो चुका था कि मेरा मोबाइल घर पर ही छूट गया होगा ।

घर के बाहर से ही घर के भीतर के माहौल का आकलन करते हुए मैंने घर में प्रवेश किया । सब कुछ जरूरत से ज्यादा ही सामान्य लग रहा था । फिर डरा मैं । इतनी सामान्यता तो अपशकुन है । आधा घंटा बीत गया । मुझे लगा , मैं ज़लज़ले का शिकार हो चुका हूँ ।कुछ बहाना बनाने की सोच रहा था कि अमुक काल के बारे में क्या बताना है । तब तक घर से आवाज़ आई , आपका मोबाइल रात से चार्जिंग पर लगा था और स्विच तो आफ  ही था ।डिसचार्ज  हो कर आफ पड़ा है और आप ले जाना भी भूल गए थे ।यानी कि मेरा मोबाइल सारा दिन आफ ही रहा । अब मेरे चेहरे पर चमक दुगुनी ,चौगुनी से बढ़ते हुए छः गुनी हो चुकी थी और मैंने सामान्य होते हुए कहा ,कोई बात नहीं ,आज मोबाइल भूल जाने से बड़ा आराम रहा आफिस में । सुकून से पूरा दिन कट गया ।

बात सुकून की ही तो थी ,क्योंकि उबर गए उस हादसे से, जो हुआ ही नही ।


"यह वृत्तांत श्री शिवम मिश्र जी के आदेश पर जनहित में जारी किया जा रहा है "   





15 टिप्‍पणियां:

  1. मैं सही बोलूं तो मोबाइल के बिना नहीं रह सकता ... मेरा मोबाइल कहीं छूट ही नहीं सकता.... अगर मेरे हाथ में मोबाइल नहीं भी रहता है .. तो भी हाथ का शेप मोबाइल के फॉर्म में ही रहता है.. ऐज़ इफ आय हैव होल्ड इट इन माय हैण्ड.. मेरी भी आदत है सौ बार जेब चेक करने की..

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  2. ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया ... और जनहित मे इस लेख को जारी करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

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  3. किस कॉल के आने से इतना भयभीत हुए थे , उसका जिक्र भी होना चाहिए !
    वास्तव में आजकल मोबाइल जरुरत हो गया है , लक्ज़री नहीं !

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    1. वाणी जी ,मैं भी उस नम्बर की ही तलाश में हूँ -:)

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    2. हमसे कई लोगों ने पूछा -"अमित भाईसाहब का कोई दूसरा नम्बर हो बताइये कुछ जरूरी बात करनी है। उनमें वे नम्बर भी हैं जिनकी निवेदिता जी को तलाश है।"

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  4. मोबाइल अब जिन्दगी की जरुरत बन गई है ..जैसे भोजन कपड़ा मकान....

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  5. इसीलिये तो अपना मोबाइल खोने का खतरा नहीं उठाते हैं हम..

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  6. :)...पढ़ कर मज़ा आया लेकिन सावधानी हटी दुर्घटना घटी का संदेश समझने वाला है।


    सादर

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  7. जब कर नहीं तो डर नहीं ,यहाँ इतना डर ! - दाल काफ़ी काली लगती है .

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