इस व्यस्तता भरी ज़िंदगी में अगर किसी के कुछ नितांत व्यक्तिगत पल होते हैं तो निश्चित तौर पर वे पल 'शौचालय ' में ही व्यतीत किये गए होते हैं | अब चूँकि वहां कुछ करने को तो होता नहीं ,जो कुछ होता है बस अपने आप होता है | सो सारा ध्यान अकस्मात किसी भी विषय पर चिंतन करने को तत्पर रहता है और उस चिंतन मनन से प्रायः बड़े अच्छे परिणाम निकल आते है |
बच्चे वहां याद की हुई चीजों को पुनः दोहरा कर पक्का कर सकते हैं | मैं तो अत्यंत कठिन प्रश्नों की गुत्थी अक्सर वहीं सुलझा लेता था | शौचालय का एक प्रयोग और भी है , वो यह कि अगर आपको किसी को इग्नोर करना है और वो आपको पुकार रहा हो या मिलने चला आया हो तो फ़ौरन वहीं घुस जाइए शौचालय में और आराम से पालथी मार कर अपनी मानसिक गुत्थियां सुलझाते रहिये जब तक कि मिलने वाला या पुकारने वाला व्यक्ति वहां से चला न जाए |
कार्यालय में वैसे तो शौचालय का प्रयोग शौच के लिए तो न्यूनतम तौर पर ही होता है | हाँ ! कुछ निजी क्षण निकालने के लिए लोग अवश्य वहां प्रायः पाए जाते हैं | पर एक तथ्य तो यह बिलकुल स्पष्ट और सिद्ध है कि शौचालय में सोचने का कार्य सर्वाधिक किया जाता है | अतः मूलतः इसका नाम 'सोचालय ' ही होना चाहिए |
अब अगर यह 'सोचालय' योजना भवन का हो तो जाहिर सी बात है , जहां पूरे देश के १२५ करोड़ लोगों की दिशा दशा सुधारने हेतु नीति निर्धारण करने वाले सोचने का कार्य करते हों तब उनके 'सोचालय' का प्रकार भी उच्च कोटि का होना ही चाहिए | इन भावनाओं के आगे ३५ लाख कुछ भी नहीं | ऐसे लोगों की नीयत में कोई खोट नहीं | अरे जब चिंतन का स्थान उपयुक्त होगा तभी सही और अच्छे विचार उनके मन में उत्पन्न होंगे और बाई प्रोडक्ट के रूप में उत्पन्न उनके विकार " शौचालय'" में विलीन हो जायेंगे और उत्पन्न विचार उसी "सोचालय" में मूर्त रूप धारण करेंगे |
अरे ! वह योजना आयोग है कोई बिन्देशरी पाठक ( बिहार वाले ) का सुलभ शौचालय नहीं कि ५० पैसे प्रति " सोच " की दर तय कर दें और आपके भविष्य की नीव वहां तैयार क़ी जाए | पता चला है कि योजना भवन का ' सोचालय' इतना सिद्ध स्थान है कि मंद बुद्धि और मूढ़ प्रकृति के लोग भी अगर वहां प्रवेश पा जाते हैं तो उनके मन में भी एक से बढ़ कर एक नए आइडिया आ जाते हैं | अभिषेक बच्चन भी जुगाड़ लगा कर वहीं जाते होंगे ,नए नए आइडिया ढूँढने |
एकदम दुरस्त फरमाया आपने :):).आखिर सोचालय है ..कोई मजाक है.:):).
जवाब देंहटाएंहमारे तो बहुत नये विचार वहीं पर आते हैं...
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व मजेदार लेख अमित जी । हमें तो जब से प्रवीण पांडेय जी ने यह गुरुमंत्र दिया कि कोई भी विचार जाया नहीं जाने देना है, उसे फौरन पकड़ लेना है, तब से मैं भी इस सोचालय में समय का बेहतर सदुपयोग करता हूँ कि जो बी नये विचार आते हैं मोबाइल के नोट्स में फौरन पंच-इन कर लेता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष किया है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
bahut sahi v sateek baat likhi hai aapne
जवाब देंहटाएंdhayvaad
poonam
ha ha ha...mast...
जवाब देंहटाएंबहोत अच्छा article है
जवाब देंहटाएंHindi Dunia Blog (New Blog)
गहरी सोच वाली पोस्ट
जवाब देंहटाएंसोच में कितना समय लगा होगा....
वैसे सत्य की खोज... समय तो लेती ही है
hats off...
जवाब देंहटाएंBahut hi karara vyang, sachhai se otprot, sirshak hi itna damdaar hai ki kya kehne
bhai, main to aap ke isi sirshak pe ek vyang kavita likhne ka soch raha hoon, adbhut lekhan...
बहुत ही साथक और सामयिक लेख ....मेरे भी ब्लॉग पर पधारे
जवाब देंहटाएंAmitji,
जवाब देंहटाएंye link aapke vicharon se prabhavit aur aapko hi samarpit...
http://www.poeticprakash.com/2012/06/blog-post.html
बहुत अच्छा लिखा है | आभार |
हटाएंहा हा हा हा हा ....सही व्यंग्य
जवाब देंहटाएंSahee re sahee.
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