एक पौधा नन्हा सा ,
यादों का उनकी,
उग आया ,
बिना बताये ,
बस चुपके से,
मन में मेरे ,
जब कभी सूखने को आता,
बरबस आंसू निकलते मेरे,
और फिर हो जाता,
वो हरा भरा,
धीरे धीरे वो,
बड़ा हो चला ,
और रोकने लगा,
हर आने वाली,
रोशनी और हवा को,
चाहा काट दूँ आज,
वो दरख़्त यादों का,
और सांस लूँ,
नई किरणों में ,
पर आज फिर,
मुस्कुराती वो दिख गई,
झुरमुट में दरख़्त के,
और बोली हौले से ,
"आज तो पर्यावरण दिवस है न ",
एक बार फिर रह गया ,
कटने से दरख़्त,
यादों का |
पर्यावरण पर मन मोहक सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति बहुत ख़ूब सर जी
जवाब देंहटाएंहमेशा यूँ ही हरे - भरे रहें दरख्त यादों के भी और हमारी वसुंधरा के भी... बहुत खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंयादों के दरख्तों में तो अमृत बसता है, एक बार कट कर पुनः उग आते हैं वे...
जवाब देंहटाएंअच्छा किया....................
जवाब देंहटाएंयादों के दरख्त कभी काटता है कोई???
आज तो पर्यावरण दिवस है न ",
जवाब देंहटाएंएक बार फिर रह गए ,
कटने से दरख़्त,
यादों के |
गनीमत है.....
पर्यावरण दिवस ने बचा दिया....
नहीं तो यादों को कहाँ टाँगते...!!
खूबसूरत......
बहुत खूबसूरत....!!!
jako rakhe saiyan ....maar sake na koi ...!!
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti ...
यादों के दरख़्त सूखते नहीं .... आंसुओं का सिंचन होता ही रहता है
जवाब देंहटाएंजीवन के पर्यावरण के लिये,तपते मौसम में, इस वृक्ष की छाँह भी तो चाहिये !
जवाब देंहटाएंयादों के दरख़्त काटे नहीं कटते कितनी ही कोशिश कर लो.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सदा की अर्पिता पर आपका स्वगत है
एक बार फिर रह गए ,
जवाब देंहटाएंकटने से दरख़्त,
यादों के |
बहुत बढिया ...
yaade to yaade hi rahti hai.....
जवाब देंहटाएंbahut sundar....man moh liya
जवाब देंहटाएंएक बार फिर रह गया ,
जवाब देंहटाएंकटने से दरख़्त,
यादों का
चलो इसी बहाने भावनाएं कुछ दिन और प्रदूषित होने से बची रहेंगी.
simply beautiful...
जवाब देंहटाएंwe often fail to forget what we feel like forgetting most..
हर रोज मनता रहे -पर्यावरण दिवस ...
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