गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

"यूँ दबे पाँव"


कब तक चलूं,
यूँ  दबे पाँव,
कि आवाज़ न हो,
तुम्हारी पलकों की आहट,
पाने को बेचैन,
अपनी आवाज़ गुम कर,
बस रहता हूँ गुम, 
सन्नाटे के शोर में,
साँसे भी मेरी चलती हैं अब,
दबे पाँव कि,
कहीं तुम्हारी पलकें,
उठें मेरी ओर,
आहट हो नज़रों की,
और मै चूक न जाऊं,
निभाते निभाते रिश्ते,
दबे पाँव,
थक गया हूँ मै,
दबे पाँव चलना,
ज्यादा मुश्किल,
होता है शायद,
यूं लगता है अब,
ज़िन्दगी भी मेरी, 
चलती है दबे पांव,
कहीं मौत ,
न जाग जाए | 

12 टिप्‍पणियां:

  1. शोर में सौन्दर्य तरंगें भंग हो सकती हैं, शान्त ही भावों का आदान प्रदान हो।

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  2. ज़िन्दगी भी मेरी,
    चलती है दबे पांव,
    कहीं मौत ,
    न जाग जाए |
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. ज़िन्दगी भी मेरी,
    चलती है दबे पांव,
    कहीं मौत ,
    न जाग जाए | waah

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  4. I would like to say thanks for the efforts you have made compiling this article. You have been an inspiration for me. I’ve forwarded this to a friend of mine.

    From Great talent

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  5. ज़िन्दगी भी मेरी,
    चलती है दबे पांव,
    कहीं मौत ,
    न जाग जाए | ...अच्छा ख्याल है.

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  6. ज़िन्दगी भी मेरी,
    चलती है दबे पांव,
    कहीं मौत ,
    न जाग जाए | ..सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  7. कविता ने प्रसाद की ये पंक्तियाँ सहसा याद दिलाई ...
    पथिक आ गया एक न मैंने जाना
    हुए नहीं पद शब्द न मैंने पहचाना

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