रविवार, 4 दिसंबर 2011

"संचय" कितना और कहाँ तक ?

        
           एक राजा बहुत ऐशोआराम से राज कर रहा था | उसके राज में धन दौलत की कोई कमी नहीं थी | राजा बहुत संचयी प्रवृति का था | उसने अपार धन, दौलत, सम्पदा एकत्र कर रखी थी |
           एक दिन बातचीत के दौरान उसने अपने कोष रक्षक से पूछा कि ,यह बताओ ,हमारे पास जितनी दौलत है, उससे कब तक का काम चल जाएगा ,हम कब तक के लिए निश्चिन्त समझे, अपने आप को | कोष रक्षक ने सोच विचार के बाद बताया कि, महाराज ,जितनी दौलत खजाने में है ,उससे आपकी सात पीढ़ियों तक की चिंता करने की आवश्यकता आपको  नहीं है ,बहुत आराम और मजे से सात पीढ़ियों तक के लोग गुजर बसर कर लेंगे | हाँ ! मगर आठवीं पीढ़ी के लोगों को कमी महसूस हो सकती है | यह सुन  राजा चिंता में पड़ गया | उसने अपने सलाहकारों को बुला मंत्रणा की और सलाह मांगी की, क्या किया जाए ? सलाहकारों ने राय दी कि ,इस विषय के लिए एक महान पंडित हैं ,उन्हें ही बुलाना पड़ेगा ,वे ही कुछ उपाय बता सकते है ,वे बहुत सिद्ध पंडित थे |
          आनन फानन में राजदूत को पंडित को बुलाने के लिए भेज दिया गया | ऐसा लग रहा था ,मानो देश पर कोई घोर संकट आन पड़ा है | दूत ने पंडित के घर जाकर सन्देश दिया कि राजा ने तुम्हे बुलाया है ,तुरंत चलना होगा | पंडित ने पूछा ,क्या घोर विपत्ति आन पड़ी, जो राजा ने तुरंत बुलाया है | दूत ने सारा किस्सा सुना दिया कि राजा अपनी आठवीं पीढ़ी के बारे में चिंतित है कि कहीं उस पीढ़ी को धन वैभव की कमी ना हो जाए ,उसी शंका  के उपाय के लिए तुमको तुरंत बुलाया गया है | और इस उपाय के बदले तुमको राजा पुरूस्कार स्वरूप बहुत सारा धन देंगे |
         पंडित ने वहीं से बैठे बैठे अपनी पत्नी को आवाज़ लगाईं और पूछा ,पंडिताइन ,यह बताओ ,अपने पास खाने पीने का इंतजाम कब तक का है ? पंडिताइन ने भीतर से लेटे लेटे बताया कि, स्वामी ,अपने पास आज रात तक के भोजन की व्यवस्था है बस |
         पंडित तनिक मुस्कुराते हुए राजा के दूत से बोला कि, भाई अभी तुम जाओ ,मेरे पास आज तक का इंतजाम तो है खाने पीने का ,कल की कल देखेंगे | राजा से कहना ,मै अभी नहीं आ पाऊंगा | कल सवेरे आऊँगा |
          यह सुनकर दूत वहां से लौट आया और सारा वृतांत राजा को सुना दिया | यह सुनकर राजा स्तब्ध रह गया कि ,धन के लालच में भी पंडित नहीं आया ,और तो और, उसे कल की भी चिंता नहीं है ,और मै अपनी आठवीं पीढ़ी की चिंता में लगा हूँ | बस इतनी छोटी सी बात से राजा का सारा भ्रम दूर हो गया और उसको ज्ञान प्राप्त हो गया | उसने अपने राज की सारी धन दौलत गरीबों में बाँट दी और अत्यंत सादे जीवन में रहते हुए अपने राजधर्म का निर्वाह करने लगा और हाँ ,उस पंडित को अपना राज पुरोहित नियुक्त कर दिया |    
              
              "सोचने को विवश करती कहानी "संचय कितना और कहाँ तक ?"

22 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ ! सोचे जा रही हूँ कि सब कैसे आठवीं पीढ़ी को सोचते हैं..

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  2. संचय हो तो केवल दान के निहितार्थ... यह ही समझना है हमें!

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  3. 'kaun banega crorepati' me 5 crore jeetane wale sushil kumar ne jab amitabh bachan se pucha,"sir,ab to mai apani 6000 hajar rupaia mahina wali MANREGA ki naukari chhor sakata hu??
    Is sawal ke jabab me amitabh ne kaha ki aap kya aap apane saat pushto ki naukari bhi chhorwa sakate hai.
    tatparya ye ki log bhavishya ke prati anishchitata ke karan sanchay karte hai...
    ab koi raja hai to wo pidhi dar pidhi karta hai..
    koi sadharan aadami hai to budhape tak karta hai..
    JO JITANA SAMPANN HAI USAME BHAVISHYA KE PRATI UTNA HI DAR HAI....UNCHAI SE GIRANE KA DAR UNHE HOTA HAI..NA KI UNHE TO JAMEEN PAR HAI..

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  4. बहुत दार्शनिक प्रश्न है, निर्णय तो हम ही को करना है।

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  5. बहुत ही सुन्दर और अनुकरणीय विचार है...

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  6. पुरानी पर हमेशा ही प्रेरक बनी रहने वाली सुंदर कथा।

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  7. यह व्ह लालच है जो बढ़ता ही जाता है।
    मुझे तो यह कहावत बहुत अच्छी और सटीक लगती है
    पूत कपूत तो क्यों धन संचय
    पूत सपूत तो क्यों धन संचय

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  8. अमित जी .......कहानी का मूल विषय बहुत अच्छा है ........ज्ञानवर्धक भी .......पर इस तरह की मिलती चुलती कहानी पहले मै पढ़ चुकी हूँ ...पात्र ने नाम बदल गए है बस ........आभार

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  9. बहुत ही सार्थक और प्रेरक संदेश।

    सादर

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  10. कल 06/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. बिल्कुल सही कहा, कहते भी हैं

    जो पूत कपूत तो क्यों धन संचय
    जो पूत सपूत तो क्यों धन संचय

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  12. जैसे राजा को ज्ञान प्राप्त हुआ वैसे सभी को हो :)

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  13. सुन्दर संदेशात्मक विचारोत्प्रेरक प्रस्तुति...
    सादर.....

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  14. ऐसे लोग शायद ये मान लेते हैं...कि उनकी अगली पीढ़ी निकम्मी होगी...शायद इसी लिए संचय के चक्कर में पद जाते हैं...अगली पीढ़ी ऐसी तैया करानी चाहिए जो...विरासत को संजो और संवर्धित कर सके...

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  15. जैसे उनके दिन बहुरे वैसे ही स्विस बैंक वालों के बहुरैं।

    कहावत है न- पूत सपूत तो क्यों धन संचै,
    पूत कपूत तो क्यों धन संचै।

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  16. बेहद ज्ञानवर्धक ...अगर कोई समझे तो ...

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