रंग भाते है मुझे,
लड़की हूँ न,
भाते तो परिंदे भी है,
लड़की हूँ न,
मन तो पतंग है,
पर ढील नहीं दे पाती,
लड़की हूँ न,
पापा की दुलारी हूँ ,
पर खेल न सकूँ लड़कों संग,
लड़की हूँ न,
इतराना इठलाना चाहूँ,
हँसना चिल्लाना चाहूँ,
पर नहीं ,लड़की हूँ न,
रिक्शा ,ऑटो,बस,स्कूल,
टीचर,प्रिंसी,कोच,कैप्टन,
सारे सब तो आँख गडाए,
सब से बस आँख चुराऊं,
लड़की हूँ न,
आई.आई.टी./आई.आई.एम. ,
सब किया,
पर लिंग पराजय कहाँ छुपाऊं,
लड़की हूँ न,
जीवन तो धारण करती मै ही ,
सृष्टि अधूरी मेरे बिन,
कब समझोगे प्रियतम तुम,
पर कैसे समझाऊं तुम्हे,
लड़की हूँ न |
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसत्य है ..पर न जाने क्यों मानने को दिल नहीं करता.
जवाब देंहटाएंलड़की हूँ ना ...
जवाब देंहटाएंदेखा है ,आजकल लड़कियों के दर्प से झिलमिलाते चेहरे ...इन आँखों का सुकून बड़े आत्मविश्वास से कहता है ...लड़की हूँ मैं ....और दिल सैकड़ों आशीषें देता है ...इनका यह आत्मगर्व टूटने ना पाए !
लडकी होना गुनाह नही…………रचना सुन्दर है मगर अब वक्त ने करवट ले ली है इसलिये हमे ही ये बात सबको समझानी होगी।
जवाब देंहटाएंसही और सटीक लिखा है आपने ...कहीं -न-कहीं एक चुभन तो रह ही जाती है .
जवाब देंहटाएंलड़की मन की भावनाओं को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अमित जी ...लड़की के मन के भावों का सही चित्रण ...
जवाब देंहटाएंकविता के पोस्ट मार्टम की कुछ संभावना है मगर मूड नहीं है आज इसलिए लड़की होने की असहायता को बखूबी उभारा है कहकर विदा लेता हूँ!
जवाब देंहटाएंरिक्शा ,ऑटो,बस,स्कूल,
जवाब देंहटाएंटीचर,प्रिंसी,कोच,कैप्टन,
सारे सब तो आँख गडाए,
सब से बस आँख चुराऊं,
लड़की हूँ न,
आई.आई.टी./आई.आई.एम. ,
सब किया,
पर लिंग पराजय कहाँ छुपाऊं,
लड़की हूँ न,
sahi kaha.....aaj bhi in chubhati nazron ka saamna karna hi padta hai...
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जवाब देंहटाएंआज का युग बदल गया है...
जवाब देंहटाएंवक़्त ने ले ली करवट ------ !
लड़की होना अभिमान है....
सिमट गयी बल-सिलवट --- !!
लड़की ने है छुआ चंदा .....
उसके गले अब कोई ना फंदा --- !
अब तो वह लड़का जैसा ही देती है कन्धा...
इसे जो ना देख पाए ?...क्या वो नहीं है अँधा !!