सूख चुके रिश्तों में,
शायद,
आँखों की नमी भी ना रही |
फासले दरमियां,
कुछ यूँ हुए,
कि संग रह के भी संगदिल हुए |
दूरियां क्या इतनी,
कि तय हो ना सके |
अरे !
सूखे दरख़्त हो,
या हो रिश्ते
शादाब हो भी सकते है !
बस नज़र भर,
देखने वाली हो नज़रें
और हो,
उन नज़रों में पानी |
बस नज़र भर,
जवाब देंहटाएंदेखने वाली हो नज़रें
और हो,
उन नज़रों में पानी |
बस बस काफी है इतना ही .
खूबसूरत ख्याल.
जान छिड़कने दे कोई उनमें,
जवाब देंहटाएंआशायें जग जायें फिर मन में।
waah... bas nazar ki baat hai
जवाब देंहटाएंसही बात कही सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन रचना बहुत खूब लिखा है आपने वाह !!!!समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंअरे !
जवाब देंहटाएंसूखे दरख़्त हो,
या हो रिश्ते
शादाब हो भी सकते है !
बस नज़र भर,
देखने वाली हो नज़रें
और हो,
उन नज़रों में पानी |
nazar nazar ki baat hai...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसाधु-साधु
जवाब देंहटाएंbahut sundar.........."dekhne wali ho nazrein, aur nazron mein paani..."
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
शादाब हो भी सकते हैं.... सचमुच...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
सादर...
बस नज़रें हों और उनमे हो पानी फिर रिश्ते भी हरे हो जाते हैं... सुन्दर रचना...आभार
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंsahi hai...umeed kabhii nahin chhodnii chaahiye
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंजीवन के एक असह्य अनुभव का अहसास देती कविता
जवाब देंहटाएंबचपन में जो सुनी थी कहानी....
जवाब देंहटाएंसुनाई तो थी उसे हमारी बुढिया नानी ...
लड़कपन से बड़क-पन तक बीत गयी जवानी...
उस प्यार के एहसास से आज भी आँखों में आते हैं पानी !
हर रिश्ता मांगे हिफाज़त क्योंकि होती है उसमें नजाकत...
पर हम जब रिश्तों को तौलकर करने लगते हैं मोल भाव...तो,
असहनीय वेदना होती है.....निकलने लगते हैं बहुत सारे घाव..
रिश्तों की गर ना हो हिफाज़त, तो आखिर होती सबकी फजीहत !!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह ! बहुत ख़ूब ....
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