पैसों के लिए,
पहले सिक्के ही खनके,
और बाहर आ गए |
सिक्के खर्च होते गए,
धीरे धीरे,
फिर,
कुछ छोटे नोट,
भी कम हो गए |
मगर,
कोने में दबा रुपया,
सहेजा रहा,
भविष्य के लिए |
ऐसी ही बात है,
शब्दों की,
जब तुम सामने हो,
कोशिश करता हूँ,
कुछ कहने की,
पर,
पहले खनकते,
शब्द ही बाहर आते हैं,
छोटे छोटे,
शायद उनकी आवाज़,
तुम्हे पसंद नहीं |
पर तनिक ठहरो तो,
मै कुछ और बड़े शब्द,
खर्च करना चाहता हूँ,
पर तुम तो,
सिक्कों की खनक से ही,
मेरी हैसियत,
आंकने लगती हो,
और शब्दों के ही चन्द,
सिक्के मेरी हथेली,
पर रख कर आगे,
बढ़ जाती हो |
मुमकिन हो,
मै शाहखर्च नहीं,
शब्दों को खर्चने में,
पर क्या रिश्तों की भी,
नीलामी होती है,
जो ज्यादा शब्दों की,
बोली लगाएगा,
वही जीतेगा |
शायद,
कुछ चुप सौदागर भी,
होते हैं,
मेरे जैसे,
जो अपना मुड़ा तुड़ा,
नोट और शब्द,
(कोने में दबा )
खर्च करते हैं,
अंत में |
पर,
तब तक तो,
बोली लग चुकी होती है,
और,
देखते रह जातें हैं,
हम,
बस,
लगते दीमक,
अपने शब्दों,
की तहों में ।
आंकने लगती हो,
और शब्दों के ही चन्द,
सिक्के मेरी हथेली,
पर रख कर आगे,
बढ़ जाती हो |
मुमकिन हो,
मै शाहखर्च नहीं,
शब्दों को खर्चने में,
पर क्या रिश्तों की भी,
नीलामी होती है,
जो ज्यादा शब्दों की,
बोली लगाएगा,
वही जीतेगा |
शायद,
कुछ चुप सौदागर भी,
होते हैं,
मेरे जैसे,
जो अपना मुड़ा तुड़ा,
नोट और शब्द,
(कोने में दबा )
खर्च करते हैं,
अंत में |
पर,
तब तक तो,
बोली लग चुकी होती है,
और,
देखते रह जातें हैं,
हम,
बस,
लगते दीमक,
अपने शब्दों,
की तहों में ।
गहरे एहसासों के गंभीर ख्याल
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
गहन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदेखते रह जातें हैं,
जवाब देंहटाएंहम,
बस,
लगते दीमक,
अपने शब्दों,
की तहों में ।
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
जवाब देंहटाएंकुछ चुप सौदागर भी,
जवाब देंहटाएंहोते हैं,
मेरे जैसे,
जो अपना मुड़ा तुड़ा,
नोट और शब्द,
(कोने में दबा )
खर्च करते हैं,
अंत में |
क्या बात है. बहुत सुन्दर.
mamshparshi rachana ,prabhavit karti huyi , achhi lagi .aabhar ji .
जवाब देंहटाएंwonderfully written.
जवाब देंहटाएंपर क्या रिश्तों की भी,
जवाब देंहटाएंनीलामी होती है,
जो ज्यादा शब्दों की,
बोली लगाएगा,
वही जीतेगा |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..एहसास भी बोल कर बताने पड़ते हैं ..
आवाजों के बाज़ारों में, खामोशी पहचाने कौन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ।
sikko aur sabdo dono ko bhut khubsurati ke sath piroya hai apne...
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंwaah kya baat hai. socho ko shabdo ke prayog ko ek naya aayam deti sunder, sashakt rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे उतर गए आप के शब्द.
जवाब देंहटाएंफुटकर शब्द ही बच रहे हैं अब।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंVery touching creation. It happens that people fail to understand us. They judge us by few words only. We need to show enough patience to hear out someone properly , then only a relationship grows and lasts long. And also we need to keep our EGO in check.
.
शब्दों की खनखनाहट में ओज है !
जवाब देंहटाएंशायद इस जगह मितव्ययिता नहीं चलती...
जवाब देंहटाएंअमित जी,
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना है। लेकिन इन शब्दों में दीमक नहीं लगती, पक्की बात है। खरी चीज अंत तक खरी रहेगी, ऐसा विश्वास है।
बहुत खूब ...बढ़िया अंदाज़ रहा आपका ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंपर क्या रिश्तों की भी,
जवाब देंहटाएंनीलामी होती है,
जो ज्यादा शब्दों की,
बोली लगाएगा,
वही जीतेगा
सही कहा आपने..
जो शब्दों ज्यादा को तोड़-मरोड़ कर
बोली लगाएगा..
जीत उसी की होती है..
क्योंकि..
शब्दों के भारी-भरकम
जाल से निकलना आसान नहीं होता
हर किसी के लिए...
bahut sunder rachna ....aur han ye shbdonke chand sikke nahi hai :)
जवाब देंहटाएंvakai sunder....
शानदार! बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अमित जी नमस्कार बहुत सुन्दर शब्द बंध अनोखी शैली में उपजी ये रचना प्यारी लगी बधाई हो
जवाब देंहटाएंचुप सौदागर थे न इसीलिए हम भी देर से पहुंचे ..
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
शायद,
कुछ चुप सौदागर भी,
होते हैं,
मेरे जैसे,
जो अपना मुड़ा तुड़ा,
नोट और शब्द,
(कोने में दबा )
खर्च करते हैं,
अंत में |
गुड है! पक्के कवि बनने की दिशा में अग्रसर है मामला!
जवाब देंहटाएंआप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
क्या बात है...शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपने जीव व्यवहार से जो विषय को ढूंडा है और उसको अपनी कृति से व्यक्त किया है__सराहनीय है |
जवाब देंहटाएंआजकल सिक्को की ही खनक चलती हैं -- नोट का अस्तित्व भले ही भारी हो पर आवाज कहाँ ?
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण - अवलोकन २०११ के अंतर्गत आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है ब्लॉग बुलेटिन पर - पधारें - और डालें एक नज़र - प्रतिभाओं की कमी नहीं - अवलोकन २०११ (18) - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंbahut -bahut sundar!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
jabardast shabd vyanjana.
जवाब देंहटाएंVry nice cmparisn of wrds to coins.. Adwiteeya rchna
जवाब देंहटाएं