क्योंकि ०९/०४/२०११ केवल एक तिथि नहीं , आने वाले दिनों में यह तिथि यादगार तिथि के रूप में जानी जाएगी ,इसमें कोई संदेह नहीं | इस तिथि को प्रत्येक वर्ष 'नागरिक दिवस' के रूप में भी मनाए जाने की बात की जा रही है | आम आदमी के मन में एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से या कौतूहल वश यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या हासिल हो गया या होने वाला है, जो गली गली में इतना जश्न मनाया जा रहा है | उनका सवाल है कि, क्या भ्रष्टाचार अब ख़त्म हो गया | क्या उस अम्पायर (लोकपाल ) पर इतना भरोसा करना ठीक रहेगा ,जिसे चुनने की इतनी कवायद हो रही है,खिलाडियों (नेताओं) को नियमतः खेलने को मजबूर करने की बात क्यों नहीं हो रही है ,या उनकी चयन प्रक्रिया ऐसी हो कि अच्छे और law abiding खिलाड़ी ही चुन कर आये ताकि अम्पायर पर भी कम ही दबाव रहे | अकेला अम्पायर कितना दबाव बर्दाश्त कर पायेगा ,यह तो समय ही बताएगा | अभी तो अम्पायर चुनने वाली टीम के सदस्यों को चुनने में ही लोगो में मतभेद हो गया ,यह दुखद है | देखने वाली बात है कि आम आदमी मूलतः ईमानदार होता है और ईमानदारी से ही जीना चाहता है | वह सरकारी तंत्र में विश्वास करता है और उससे अपेक्षा भी करता है पर जब रोजमर्रा की ज़िन्दगी में उसका विश्वास टूटता है और उसे ज़िंदा रहने के लिए लड़ना पडता है तब वह भी थक हार कर गलत कार्य करने को अग्रसित हो जाता है और यही आम आदमी जब हक़ की लड़ाई के लिए हथियार उठा लेता है तब नक्सलपंथियों और अपराधियों का जन्म होता है |
लोगों को जश्न मनाते देख यह बात तो सिद्ध होती है कि, आम आदमी ज्यादातर ईमानदारी और नियम कानून के पक्ष में रहना चाहता है और जब कभी ईमानदारी और हक़ की बात और लड़ाई होती है, तब वह उसमे और उससे खुद को जोड़ कर देखता है | अन्ना जी की जीत में वह अपनी जीत ,अपने बच्चों की जीत देख रहा है | इतना तो हर किसी को आसानी से समझ में आ जाएगा और आ भी रहा है कि अगर देश में भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए ,सारे काम नियम कानून से हो तो हमारे देश में इतनी समृद्धि है कि हर किसी का जीवन खुशहाल हो सकता है |
अन्ना जी ने यह जो अलख जलाई है ,हम सभी का भी यह दायित्व और कर्त्तव्य है कि हम भी अपने आसपास के परिवेश में गलत कार्यों का विरोध करे और स्वयं भी भ्रष्ट आचरण ना करें,और गलत सही का आकलन करने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि, किसी भी कार्य को करने से पहले या विवादास्पद निर्णय लेने से पहले इस पर विचार कर ले कि, हमारे उक्त निर्णय से तत्कालिक परिणाम क्या होंगे और दूरगामी परिणाम क्या होंगे | निश्चित तौर पर वही कार्य उचित और श्रेष्ठ है, जो दूरगामी परिणाम उचित और देशहित में दे , (यही सिद्धांत पारिवारिक निर्णयों पर भी लागू होता है ) | निश्चित तौर पर अब वह समय आ गया है कि अनुचित और भ्रष्ट आचरण करने वालों को जनता को सीधे जवाब देना होगा ,क्योंकि जनता अब अपने देश को यूँ लुटते देखना बर्दाश्त नहीं करेगी |
और तभी यह बात भी झूठी साबित होगी कि "भारत एक अमीर देश है परन्तु भारतवासी गरीब" और यह बात भी सच है कि अब नहीं (सुधार) तो कभी भी नहीं |
परिणाम दूरगामी होते हैं, उन्हीं के आधार पर वर्मान के निर्णय हों।
जवाब देंहटाएं*वर्तमान
जवाब देंहटाएंएक इमानदार सोच के साथ एक बेहतरीन शुभारम्भ हुआ और एक सुखद अंत भी हुआ। लेकिन आपसी मत-भेद अब दृष्टिगोचर होने लगे हैं , यह एक दुखन पहलू है । मेरे मन में आगे की लड़ाई को लेकर अनेक संशय हैं मन में। कहीं चयनित लोग और गठित समिति भी अन्य समितियों की तरह न हो जाए ।
जवाब देंहटाएंकुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...नवरात्रा की आप को शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंयह बात तो सिद्ध होती है कि, आम आदमी ज्यादातर ईमानदारी और नियम कानून के पक्ष में रहना चाहता है और जब कभी ईमानदारी और हक़ की बात और लड़ाई होती है, तब वह उसमे और उससे खुद को जोड़ कर देखता है |
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ....ईमानदार आदमी भी अपनी ईमानदारी बचा कर नहीं रख सकता इस भ्रष्टाचारियों के बीच ....
यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंमंजिल की तरफ उठे पहले कदम का बहुत महत्व होता है ! ९/४/२०११ को जो हुआ वह लोकतंत्र के जीत का पहला कदम है !भविष्य में ऐसे कई आन्दोलनों का यह जनक भी होगा जिसकी आवश्यकता लोकतंत्र को प्राणवान करने के लिए पड़ेगी !
जवाब देंहटाएंआभार !
यह पहला कदम कामयाब हुआ है....पर इस लड़ाई को जारी रखना ज़रूरी है..... तभी कोई ठोस परिणाम सामने आयेंगें ....
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन है आपका ।
जवाब देंहटाएंदेखा जाये आगे क्या होता है! :)
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