मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

"पटरी और ज़िंदगी"

रेल की पटरी, 
से हम,
और, 
ट्रेन सी हमारी, 
ज़िन्दगी |
पटरियां वहीँ हैं, 
जहाँ थी, 
ट्रेने गुज़र गई कितनी |
हम तो वही,
अब भी |
पर ज़िन्दगी देखो, 
कहाँ पहुच गई |
काश, 
पटरियां भी सफ़र, 
करती,
ट्रेनों के साथ |
और शामिल होते,
हम भी,
ज़िन्दगी के साथ |
पर ज़िन्दगी तो, 
निकल गई,
दूर बहुत,  
बस निशाँ छोड़ गई, 
हमारे वजूद  का |
ज़िन्दगी तो,
रफ़्तार है,
हम बस, 
पटरी सरीखे |
कितनी जिन्दगियां,
गुज़रती है, 
ऊपर से हमारे,
तमाम रिश्तों की,
नातों की | 
कभी कभी क्या, 
अक्सर ही, 
उतरती  है,
पटरी से,  
ज़िन्दगी |
हम तो बस, 
पटरी सरीखे,
ट्रेन सी ज़िन्दगी | 

8 टिप्‍पणियां:

  1. न जाने हमारे ऊपर से कितनी ट्रेनें निकल जाती हैं और हम वहीं पर खड़े रह जाते हैं।

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  2. "काश,
    पटरियां भी सफ़र,
    कर पाती,
    ट्रेनों के साथ |
    और शामिल होते,
    हम भी,
    ज़िन्दगी के साथ |"

    आपकी इस भाव कविता से मुझे कुछ कहानियाँ याद हो आयीं. नीचे क्रमशः लिंक दिये गये हैं.


    http://raamkahaani.blogspot.com/2010/03/blog-post_28.html

    http://raamkahaani.blogspot.com/2010/03/blog-post_31.html

    http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post.html

    http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post_06.html

    http://raamkahaani.blogspot.com/2010/04/blog-post_08.html

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  3. रेल की पटरी,
    से हम,
    और,
    ट्रेन सी हमारी,
    ज़िन्दगी |
    पटरियां वहीँ हैं,
    जहाँ थी,
    ट्रेने गुज़र गई कितनी |
    bahut bareeki ka vishleshan

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. पर इसके लिए पटरियों पर लेटने की क्या ज़रुरत थी ....हमारे घर जाने वाली ट्रेन शायद आप ne hi roki hogi
    सुन्दर कविता

    --
    Sonal Rastogi

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  6. pravah-mayi marmik rachana aapko pahali bar padha sundar laga / abhvyakti ki saralata
    kavy ko pusht karti hai . sadhuvad ji .

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  7. हम तो बस,
    पटरी सरीखे,
    ट्रेन सी ज़िन्दगी

    सत्य........

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