रविवार, 3 अप्रैल 2011

"इतना पैसा क्यों "

                  एक सिपाही, चौराहे पर गलत तरीके से तेज़ी से भागती गाडी रोकने के प्रयास में ,उसी गाडी से कुचल कर मार दिया गया | नतीजा घर में एक विधवा और दो अनाथ बच्चे रह गए | मुआवजा 20/25 हज़ार रुपये ,वह भी सरकारी तंत्र में कब मिले पता नहीं | देश की सीमा या देश के अन्दर कभी उग्रवादियों, से कभी माओवादियों से लड़ते हुए सैनिक शहीद ,परिणाम घर में एक विधवा ,दो तीन बच्चे और बूढ़े बेसहारा माँ-बाप | हाँ, मरने के बाद पूरी शोशेबाजी के साथ क्रिया कर्म ,फिर कोई पूछने वाला नहीं | बड़ी बड़ी औद्योगिक इकाइयों के निर्माण के दौरान अथवा बड़े बड़े पुल ,मेट्रो इत्यादि के निर्माण के दौरान कभी मजदूर, कभी अभियंता की दुर्घटना में मौत ,सहायता के नाम पर सिवाय चंद रुपये और कुछ  नहीं | ये सारे भी वही लोग हैं जो परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से देश का गौरव ही बढ़ा रहे थे |   
                    अब बात करते हैं खेल की दुनिया की | यह सच है कि विश्व में प्रत्येक क्षेत्र में अपना झंडा लहराने के लिए प्रत्येक देश जी जान से प्रयत्न करता रहता  है | खेल में भी सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने का अपना महत्त्व है ,परन्तु लगभग प्रत्येक खेल में विशेषकर क्रिकेट में खिलाड़ियों को बहुत अधिक पैसा खेल के अलावा अन्य स्रोतों से भी मिल जाता है | विश्व कप जीतना बहुत बड़ी उपलब्धि है ,खिलाड़ियों ने हम सभी का सर सारी दुनिया में गर्व से ऊँचा  कर दिया है ,परन्तु शरद पवार की तरफ से  प्रत्येक खिलाड़ी को एक एक करोड़ रुपये दिए जाने की घोषणा कुछ  हज़म नहीं हुई | निश्चित तौर पर अच्छी रकम मिलने से खिलाड़ियों का हौसला बढ़ जाता है ,पर क्या इस गरीब मुल्क में इतना पैसा यूँ ही बाँट दिया जाना उचित है |पांच लाख या दस लाख की राशि भी इनाम के तौर पर बहुत अधिक होती है | और वैसे भी पूरे देश के लोगों ने खिलाड़ियों को सर आँखों पर बिठा रखा  है | क्या यदि इतना पैसा ना दिया जाता तो उनके द्वारा किया देश के लिए कार्य सराहनीय नहीं होता |
                      इस्लाम में कहा गया है कि, घर में कोई पकवान जब बने तो इस बात का ध्यान रखा जाये कि उसकी खुश्बू जहां तक जाय ,वहां तक कोई उसकी खुश्बू से विचलित हो भूख ना महसूस करने लग जाए ,अगर ऐसा हो तो पहले उसे भी वह खाना खिलाया जाये | इस गरीब देश में इतनी  बड़ी राशि इनाम  के तौर पर पर  दे दिया जाना कुछ उचित नहीं लगा | इसकी घोषणा होने से निश्चित रूप से लोगों के मन में थोड़ी खिन्नता हुई है,क्योंकि हम लोग एक गरीब मुल्क के लोग है |दिन प्रतिदिन रोजाना की ज़िन्दगी में हम सौ, दो दो, सौ रुपये के लिए लोगों को जान की बाजी लगाते देखते हैं ,श्रम की कीमत उसके अनुपात में कितनी कम मिलती है, अक्सर देखते हैं |
                      हाँ ,यह राशि उचित लगती, अगर मुंबई ब्लास्ट में मारे गए सभी पुलिस कर्मियों को भी महाराष्ट्र सरकार ने एक एक करोड़ रुपये की सहायता दी होती |
                      यह आंकड़े पुराने है ,अब तो इनकी संपत्ति कई गुना बढ़ चुकी है | 
                      "थोड़ा तो मंथन करने की आवश्यकता है" |  

18 टिप्‍पणियां:

  1. अथाह पैसा भरा है उन सब में जिन्हें हम सर आँखों पर बिठाये बैठे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी बात बिलकुल सही है.हाँ विश्वकप जीता तो इसकी तारीफ़ होनी ही चाहिये.बेहतर होता अगर ये खिलाड़ी ही इतनी दिलेरी दिखा देते कि इनामी राशि का कुछ हिस्सा ज़रूरतमंदों के कल्याण में लगा देते.
    आपने बिलकुल सही मुद्दा उठाया है.अब संवेदनाएं सिर्फ किताबों और सिद्धांतों की बातें रह गयी हैं.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. भैया इस देश में क्रिकेट और फ्लिम स्टार दो ही लोगो की मौज है
    बस यही लोग भीड़ जुटा सकते है

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत गंभीर विषय पर आपने लिखा।
    मेरे जेहन में भी यह बात हमेशा गूंजती है कि इतना पैसा क्‍यों। दिगर खेलों में तो नहीं है सिर्फ क्रिकेट में।
    दो बातें हैं, एक जिसे मैंने न्‍यूज चैनलों में देखा और दूसरा जिसका सामना मुझे लगभग हर दिन होता है।
    पहले की बात करें तो मुझे याद आ रहा है हाकी टीम के कप्‍तान धनराज पिल्‍ले का वह बयान‍ जिसमें उन्‍होंने लगभग रूआंसे होते हुए कहा था कि हम हाकी खिलाडी भी क्रिकेटरों की तरह देश के लिए खेलते हैं और हम देश के कर्णधारों से क्रिकेटरों जितना पैसा नहीं मांगते पर उतना तो हक बनता है कि एक हाकी खिलाडी के घर दो वक्‍त की रोटी नसीब हो सके।
    दूसरा जिसे आपने भी लिखा। मैं जिस क्षेत्र का हूं वहां आए दिन नक्‍सलियों के कहर का शिकार पुलिस वाले होते हैं। कुछ समय पहले ही एसपी सहित तीन दर्जन पुलिस वाले शहीद हो गए थे। उनके परिवारों को मैं अक्‍सर देखता हूं। सहारा छिन गया, कुछ रूपए मिल गए और बस।
    गंभीर विषय। इस पर गहन विचार होना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत विचारणीय बात सामने रख दी आपने...... क्या कहूं ...?

    जवाब देंहटाएं
  6. sochane par majboor karta lekh.......
    kash ye khiladee bhee pade.....aur swayam apne ko NGO.se jode.

    जवाब देंहटाएं
  7. सच में इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं.....:((

    जवाब देंहटाएं
  8. एक क्रिकेट ही ऐसा क्षेत्र दिखता है जहाँ ये रेवडी हर कोई आँख बन्द करके बांटने में लगा है । बाकि सभी खेलों की दयनी स्थिति बखूबी देखी व समझी जा सकती है ।

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. सरासर पक्षपात है। गरीब अमीर के बीच का फासला बढ़ता जा रहा। चोर-चोर मौसेरे भाई। करोड़ों में खेलने वाले एक दुसरे की जेबें गरम करते रहते हैं , न जाने कब इन रुपयों की आवश्यकता आन पड़े , किसी घोटाले में फसने के बाद , वकीलों की फीस देने में या फिर सबूत मिटने में । मोदी या थुरूर या राजा की तरह ।

    वर्ना दो रोटी की कीमत इतनी ज्यादा नहीं होती और उपहार इतने मेहेंगे नहीं होते । अन्य खेलों के खिलाड़ियों और विजेताओं को इतना सम्मान नहीं मिलता । इससे खेल की भावना का भी अपमान होता है।

    गरीबों को ये लोग अपनी दुनिया का निवासी ही नहीं समझते तो फिर इनके बारे में सोचेंगे कैसे ? इनके लिए तो वो कीड़े-मकोड़े की तरह मरने वाले जीव-जंतु हैं मात्र।

    .

    जवाब देंहटाएं
  11. Every word is true,but this is also a TRUTH that we digest all this and again we are united to celebrate another CRICKET GAME in a NUMBER that leaves far behind total number of INDIANS that celebrate INDEPENDENCE DAY in TRUE TERMS(not a simple holiday)

    जवाब देंहटाएं
  12. जो राजनीति करते हैं, वही क्रिकेट के मठाधीश हैं...सही है क्रिकेट की अफ़ीम बांटते रहो...यूथ पॉवर का ध्यान असली मुद्दों से भटका रहेगा...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं