मम्मी का फोन आया आज। जन्मदिन wish करने के लिए तो एक पूरी कहानी सुना दी हमारे जनम की।
उस रात बहुत पानी बरस रहा था। नरही , लखनऊ में पापा मम्मी रहते थे। हजरतगंज पूरा डूब सा गया था। रिक्शे का पूरा पहिया पानी मे डूब कर चल रहा था। 31 जुलाई को शाम 6 बजे रिक्शे से नरही से चौपड़ अस्पताल, जो कॉफ़ी हाउस की बिल्डिंग के बगल में थोड़ा भीतर जा कर है, मम्मी पहुंची। वहां अगले दिन पहली अगस्त को सुबह हम 10.15 को सामान्य प्रसव से पैदा हुए।
हम एकदम कोयले की तरह काले थे और मम्मी एकदम सफेद हैं। मम्मी ने हमको गोद मे लेने से ही मना किया और नर्स से कंफर्म किया यही हुआ है हमे।
नर्स ने हामी भरी तो गोद मे पहुंच गए उनकी। मम्मी ने ही बताया आज कि थोड़ी देर बाद में हमारी बुआ वहीं आई तो नर्स ने हमे बुआ की गोद मे दे दिया, वहां पहुंचते ही हमने बुआ के दोनो गाल पकड़ लिए। बुआ बोली, ई बहुत मुरहा होए बाद मा।
पता नही ,यह सही निकला की गलत। (मुरहा माने फ्लर्ट)
मम्मी की जिठानी को भी हमसे एक हफ्ते पहले बेटा हुआ था यानी हमारे कजिन। वो एकदम सफेद गोरे। जबकि ताई जी सांवली थी।
अब जब भी मम्मी और ताई जी अपना अपना ललना गोद में लेकर कभी बैठती तो रिश्तेदार अक्सर पूछते , तुम लोग एक दूसरे का बच्चा काहे लिए बैठी हो ,अपना अपना लो।
"उस समय हमको समझ होती तो फौरन रंग भेद का प्रकरण बना कर status लगाते फेसबुक पर।"
कारण रंगभेद का यह था कि मेरे पापा सांवले हैं और ताऊ जी गोरे थे।
बचपन मे काफी दिनों तक हमे कल्लू कहा गया, प्यार से ही सही। अच्छा हमे तब समझ ही नही थी कि काला गोरा क्या होता है।
"हम तब भी अपने को हीरो समझते थे और आज भी समझते हैं।"
दुनिया मेरे ठेंगे पे।
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