साइकिलिंग/स्विमिंग/मेडिटेशन
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साइकिलिंग करते समय मस्तिष्क बैलेंस बनाता है। जब गति मिल जाती है और बैलेंस बन चुका होता है, तब सायकिल अपने आप चलती रहती है और फिर मस्तिष्क खाली हो जाता है। उस क्षण फिर मस्तिष्क में दुनिया भर की बातें उपजती रहती है और मन मस्तिष्क शून्य नही रहता है। साईकल चलती रहती है और मस्तिष्क भी इधर उधर विचारों में चलता रहता है।
स्विमिंग करते समय मस्तिष्क का सारा ध्यान सांस लेने और छोड़ने में लगा रहता है। चूंकि इसमे जरा सा चूक होने पर जान का जोखिम है तो मस्तिष्क में और कोई विचार आता ही नही है और स्थिति एकदम विचार शून्य सी होती है।
मेडिटेशन करते समय प्रयास ही यही रहता है कि मस्तिष्क विचार शून्य हो जाये और इसी बात का विचार आता रहता कि कैसे भी कोई विचार न आये। चूंकि यह अवस्था सबसे सहज होती है तो इस स्थिति में विचार शून्य होना सबसे कठिन भी है।
निष्कर्ष : जिस कार्य मे जोखिम की मात्रा जितनी अधिक होगी उस कार्य मे मस्तिष्क सबसे अधिक विचार शून्य होगा क्योंकि उसमे फिर और कुछ नही सूझता है।
तुलना करें तो स्विमिंग करना इस दृष्टिकोण से साइकिलिंग से बेहतर है।
अब अगर साइकिलिंग करने में थोड़ा जोखिम जोड़ लिया जाय तो बात बन सकती है। यदि साइकिलिंग करते समय दोनो हाथ छोड़ कर साइकिलिंग की जाये तो फिर जोखिम बढ़ जाने के कारण मस्तिष्क में और कोई विचार नही आता है और मेंडिटेशन की गति प्राप्त होती है।
"किसी भी कार्य को करते समय यदि आप उसमे जोखिम की मात्रा बढ़ाते जाए तो उस कार्य को करते समय मेडिटेशन की स्थिति स्वयं बनती जाती है। फिर अलग से कोई मेडिटेशन करने की आवश्यकता नही होती है।"
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