गुरुवार, 29 अगस्त 2024

अशर्फियाँ

 जो भी शाम कभी अच्छी लगी , घुल ही गई किसी रात में।

रात को  गर निथारा जाय तो न जाने कितनी अशर्फियाँ हाथ लग जायेंगी।

"शाम जब प्रेम में होकर रात में घुलती है तब अशर्फी बन जाती है।"

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