"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
जो भी शाम कभी अच्छी लगी , घुल ही गई किसी रात में।
रात को गर निथारा जाय तो न जाने कितनी अशर्फियाँ हाथ लग जायेंगी।
"शाम जब प्रेम में होकर रात में घुलती है तब अशर्फी बन जाती है।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें