सोमवार, 29 अप्रैल 2013

" काश !............."


काश ! 

बस यूँ ही ,
वो मुस्करा दें ,
मेहरबानी  उनकी । 

पलकें उठा ,
मिला ले नज़र,
किस्मत हमारी । 

इतना हँसे कि,
गाल अवतल हो जाएँ ,
सुब्हान-अल्लाह । 

लब खोल दें ,
दो बोल बोल दें ,
ये जहां महक जाये । 

दो कदम ,
सफ़र ,
ज़िन्दगी के ,

इस 'दो' में ,
'एक' उनके हों ,
खुशनुमा सफ़र हो जाए ।

 ( 'अवतल गाल ' से अभिप्राय  'dimpled cheeks'   का है । 

13 टिप्‍पणियां:

  1. waah .....chhote-chhote shabd .....badi -badi khwahishen.....aamin .....bahut accha likha hai .....

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  2. badhiyan panktiyan:

    "इतना हँसे कि,
    गाल अवतल हो जाएँ "
    Kavita acchi lagi.

    -Abhijit (Reflections)

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  3. वाह...
    बहुत सुन्दर......
    "आधा तुम्हारा ,आधा मेरा
    पूरा हमारा हो "....(निशा महाराणा जी.)

    आपकी कलम से कविता ज़रा कम निकलती है...मगर जो निकली तो क्या खूब निकली...

    अनु

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  4. बहुत बढ़िया ...सम्बन्ध में पूर्णता आ जाएगी तब

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  5. कम शब्दों में पूरे एहसास ..क्या बात है .

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  6. भौतिकी का प्रैक्टिकल पास कर लिये। बधाई!

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