'अँगड़ाई' मनुष्य शरीर द्वारा अपनाई जाने वाली एक बहुत ही रोचक क्रिया है । कितना भी कोई थका क्यों न हो ,बस जमकर एक 'अँगड़ाई' ले ले ,अचानक से स्फूर्ति आ जाती है । जैसे बच्चे छोटी छोटी कार ,बिना बैटरी वाली , बस आगे पीछे रगड़ रगड़ कर छोड़ देते हैं ,और वह खिलौना रुपी कार तेजी से आगे भागने लगती है बस उसी तरह 'अँगड़ाई' लेते ही मनुष्य में भी आगे बढ़ने की ऊर्जा आ जाती है ।
इसके विपरीत यदि किसी में अत्यधिक ऊर्जा है और वह थक नहीं रहा है तब भी वह मनुष्य 'अँगड़ाई' लेकर अपनी ऊर्जा व्यय भी करता है अर्थात 'अँगड़ाई' ऊर्जा देती भी और हरती भी है ।
प्रत्येक व्यक्ति का 'अँगड़ाई' लेने का अपना एक विशेष प्रकार होता है । इसमें कोई किसी की नक़ल नहीं कर सकता है । जैसे प्रत्येक व्यक्ति का हस्ताक्षर भिन्न होता है और उस हस्ताक्षर से उसकी पहचान हो जाती है उसी प्रकार से हर कोई अपने अपने तरीके से 'अँगड़ाई' लेता है और अगर अँधेरे के कारण वह व्यक्ति दिख न पा रहा हो परन्तु उसकी 'अँगड़ाई' लेने की अदा दिख जाए तब उसकी पहचान हो सकती है ।
लड़कियां तो अनेक प्रकार से स्टाइल मार मार कर 'अँगड़ाई' लेती हैं । लडकियां अगर 'अँगड़ाई' लेते समय मुस्करा भी रही हो तब निश्चित तौर पर वह किसी के प्रेम में होती हैं । किसी किसी की ''अँगड़ाई' लेने की अदा तो अत्यंत मोहक और सम्मोहक होती है । लड़के तो अत्यधिक ऊब जाने के कारण ही अक्सर 'अँगड़ाई' लेते हैं ।
'अँगड़ाई' जानवर भी लेते हैं । कुत्ते सो कर उठने के बाद अक्सर अपने आगे और पीछे के पैर पास लाकर अपनी पीठ ऊंट के कूबड़ की तरह उठाकर 'अँगड़ाई' लेते हैं और उसके बाद वे एकदम से चैतन्य हो जाते हैं ।
'अँगड़ाई' की विशेषता यह है कि कोई व्यक्ति 'अँगड़ाई' अपने मन से ही ले सकता है । अगर आप किसी को 'अंगडाई' देना चाहे तब वह संभव नहीं है । बिलकुल उसी तरह जैसे बिजली की कोई भी मोटर कितना करेंट लेगी वह उस मोटर की ही मर्जी है । आप चाह कर किसी मोटर को मन वांछित करेंट नहीं दे सकते ।
'अंगडाई' सदैव एकांत में ही ली जानी चाहिए । 'अंगडाई' लेने वाले को तो पता तो होता नहीं कि ,उस समय उसकी शारीरिक स्थिति किस तरह की बन और दिख रही है ,जो कभी कभी हास्यास्पद भी हो जाती है ।
'अँगड़ाई' और हस्ताक्षर में एक विशेष प्रकार की समानता का भी होना कहा जा सकता है । जैसे हस्ताक्षर करते समय अगर कोई उसे बीच में रोक दे या कोई स्वयं किसी कारण से अपना हाथ बीच में रोक ले तब पुनः उस हस्ताक्षर को पूर्ण करने में वह मजा और 'फिनिश' नहीं आती उसी प्रकार से 'अँगड़ाई' लेते समय अगर किसी कारणवश 'अँगड़ाई' बीच में छोडनी पड़े तब पुनः उसे पूरा करने में फिर आनंद नहीं आता ।
अतः 'अँगड़ाई' जब भी लें ,भरपूर ले और पूरी की पूरी लें ।
" अब मेरी थकी कलम ने ली 'अँगड़ाई' और यह पोस्ट निकल आई "
"अतः 'अँगड़ाई' जब भी लें ,भरपूर ले और पूरी की पूरी लें ।"
जवाब देंहटाएंमान गए साहब .... आप की बात याद रखेंगे।
वैसे एक बात बतायें अँगड़ाई हमारी और हमारे बेटे की बिल्कुल एक जैसी है, एक जैसे हस्ताक्षर हैं :)
जवाब देंहटाएंवाह ..कलम की अँगड़ाई से उपजी रोचक रचना
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत अच्छा साम्य खोजा है, शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने में, हम सोचते हैं कि हमें कैसे लिखने का विचार आता है।
जवाब देंहटाएंअभी तो ली अंगड़ाई है आगे और लड़ाई है.
जवाब देंहटाएंसुबह की अंगड़ाई से यही याद आता है :).
भरपूर अंगडाई में ही मजा है ...
जवाब देंहटाएंसच है क्योकि कोई रोक, टोक दे तो फिर मज़ा नहीं आता ...
:-)
जवाब देंहटाएंएक आलसी का चिट्ठा क्या यही है????
but great observation!!!
अनु
waah ji waah
जवाब देंहटाएंवाह जी ...मज़ा आ गया अंगड़ाई ''गाथा'' पढ़ कर :)
जवाब देंहटाएंश्रीमान, अंगडाई जैसे मामूली विषय को रोचक बनाने के लिए बधाइयाँ :)
जवाब देंहटाएं-Abhijit (Reflections)
bahut badhiya amit ji
जवाब देंहटाएंअंगड़ाई लेने में भी अपना ही एक मज़ा है | सारा शरीर खुल जाता है | मास्पेशियाँ पूर्ण रूप से फैल जाती है और स्फूर्ती का संचार पूरे शरीर में हो जाता है | सुनकर और लाभप्रद लेख |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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अंगड़ाई कथा रोचक है।
जवाब देंहटाएंवैसे हम कभी अंगड़ाई नहीं लेते,यदि पास बैठ आगंतुक कभी अंगड़ाई ले ले,हमें बड़ी खुनस चढ़ती है,
यूं लगता है,अपनी सुस्ती हम पर उढ़ेल रहा है।
"संक्रमक" बिलकुल जम्हाई की भांति प्रतीत होती है।
अंगड़ाई कथा रोचक है।
जवाब देंहटाएंवैसे हम कभी अंगड़ाई नहीं लेते,यदि पास बैठ आगंतुक कभी अंगड़ाई ले ले,हमें बड़ी खुनस चढ़ती है,
यूं लगता है,अपनी सुस्ती हम पर उढ़ेल रहा है।
"संक्रमक" बिलकुल जम्हाई की भांति प्रतीत होती है।