रविवार, 28 अप्रैल 2013

" अक्वारेजिया................."


पढ़ाई के दौरान सभी विषयों में 'केमिस्ट्री' मुझे सबसे अधिक नीरस विषय लगता था और सच बात तो यह है कि समझ में भी कम आता था । गणित और फिजिक्स में अभिरुचि अधिक थी और वह दोनों सरल भी लगते थे । परन्तु कम समझ में आने के बावजूद केमिस्ट्री में पढ़ी अनेक बातें जीवन के बहुत करीब और स्पष्ट लगती हैं । 

आपस में प्रेम और व्यवहार में हमारा दिल 'अक्वारेजिया' जैसा होना चाहिए । 'अक्वारेजिया'एक ऐसा साल्वेंट है जिसमें सोना और प्लेटिनम तक भी घुल जाता है ।जिससे हम प्रेम करें उसे अपने में पूरी तरह से घुला लेना चाहिए अथवा उसमें खुद को घोल देना चाहिए । प्रेम में समर्पण ऐसा हो कि प्रेम करने वाले का अंशमात्र भी शेष न बचे । वह एकदम से अपने प्रेमी के हृदय में विलीन हो जाए । दोनों प्रेमियों की ज़रा भी कडवाहट एक दूसरे के हृदय में 'प्रेसीपिटेट' न हो ।  

केमिस्ट्री में प्रयोगशाला में 'पिपेट' का प्रयोग बहुधा किया जाता है ,द्रव की माप के लिए । हमारा मन भी बिलकुल 'पिपेट' जैसा ही होता है । दोनों सिरों से खुला और एक ओर जब भी किसी का प्यार भरा सहारा मिला ,मन में भर जरूरत प्यार भर गया । परन्तु वह प्यार टिकता तभी तक है जब तक वह प्यार भरा सहारा एक ओर से मन को दबाये हुए रहता है । जितना भी और जहां कहीं से भी प्यार भरना हो ,अपना मन रुपी 'पिपेट' उसी के प्यार में डुबोकर बस मन के दूसरी ओर अपने प्यार से पूर्ण हथेली लगा दीजिये ,बस देखते ही देखते मन वांछित प्यार से भर जाएगा । 

केमिस्ट्री में सबसे अच्छी लगती थी  'इनर्ट गैस' , स्वयं तो कुछ नहीं करती परन्तु जो कोई उसे अपने भीतर धारण कर लेता है उसे आसमान तक पहुंचा देती है । हमें भी ऐसे ही होना चाहिए , पूरी तरह 'इनर्ट' ,परन्तु जब कभी भी जिस किसी के भी साथ हो लिए उसका भरपूर साथ देते हुए उसे सदैव सफलता की ओर अग्रसर होने में सहायता करते रहे और कार्य संपन्न होने के बाद पुनः 'इनर्ट' हो जायें । 

केमिस्ट्री की क्रियाओं में 'उत्प्रेरक' बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । दो तत्व आपस में कैसा व्यवहार करेंगे और क्या परिणाम देंगे ,यह तीसरे तत्व ( उत्प्रेरक) पर निर्भर करता है । उत्प्रेरक बदल दे या हटा दे तो परिणाम बदल जाते हैं । जीवन में भी दो लोगों के व्यवहार तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति या अनुपस्थिति के कारण परिवर्तित हो जाते हैं । कुछ लोग कभी सकारात्मक हो कर संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं तो कभी कभी कुछ लोग संबंधों को लगभग समाप्तप्राय ही करा देते हैं । हमें सदा पाजिटिव 'उत्प्रेरक' की तरह ही व्यवहार करना चाहिए । ऐसे उत्प्रेरक (व्यक्ति) जो संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं उनकी पहचान करते हुए उनके सामने व्यवहार करने से बचना चाहिए । 

क्रियाएं भी दो प्रकार की होती हैं एक्सोथर्मिक और एंडोथर्मिक ।  एक्सोथर्मिक में उष्मा का उत्सर्जन होता है तापमान बढ़ जाता है । एंडोथर्मिक में उष्मा का ह्रास होता है और तापमान कम हो जाता है । बात व्यवहार में और संबंधों के समीकरण में जब कभी भी आपस में बातचीत हो या विचारों का आदान प्रदान हो तब यह क्रिया एंडोथर्मिक होनी चाहिए अर्थात आपस में एक दूसरे के क्रोध रुपी उष्मा को हजम करते हुए माहौल का तापक्रम कम कर देना चाहिए । होता प्रायः इसके विपरीत ही है ,बातचीत इस कदर बिगड़ जाती है कि क्रोध विकराल रूप ले लेता है और तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जो दोनों पक्षों के लिए हानिकारक होता है । 

अंत में एक बात और , सभी तत्वों में सबसे सुन्दर और चरित्रवान तत्व 'पारा' लगता है और होता भी है । हमार मन भी ऐसे ही होना चाहिए , पारा की तरह , चाहे जिससे मिला दो ,घूम फिर कर लौट आता है  । न किसी के पास स्वयं को छोड़ता है  और न ही किसी  को अपने साथ चिपका कर लाता है । मिलेगा भी कभी, तो केवल अपनी ही तरह चमकते हुए पारा से ही , अनंत बूंदे भी हो पारा कि तो भी मिलकर सब आपस में एक बड़ी बूँद बन जाती है । 

मैं कितना 'केमिकली करेक्ट' हूँ ,यह तो अब आप ही बताएँगे । 


13 टिप्‍पणियां:

  1. संबंधों की केमेस्ट्री हमें कभी समझ न आयी, हम तो सदा ही प्रेसीपिटेट होते आये हैं, चुपचाप नीचे पड़े पड़े।

    जवाब देंहटाएं
  2. रसमय रसायन का शास्‍त्र. कभी इस तरह http://akaltara.blogspot.in/2011/06/blog-post_25.html देखा था मैंने.

    जवाब देंहटाएं
  3. वैज्ञानिक शब्दों की व्याख्या यूँ प्रेम और जीवन समझाने को..... बहुत बढ़िया है, समझ रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसा लग रहा है कि कैमिस्ट्री के विद्वान ने बहुत कुछ लिख दिया है, और हम वही कैमिस्ट्री से भागने वाले.. जिसके सर के ऊपर से सब निकल गया.. कभी सूत्र याद नहीं हुए.. बहुत मुश्किल होता था.. यह सब

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्कार
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (29-04-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  6. अरे अमित जी आपको इस पोस्ट का चीफ़ गेस्ट हमको बनाना था....
    हमें लगा कि दो चार दिन पहले आपकी नाइट्रिक एसिड को हमने झटका दिया था उसके बाद कोई तोहफा तो हमें मिलना था :-)

    मज़ा आ गया पढ़ कर....लगा एक दो चेप्टर और लिख लिए जाएँ.

    सादर
    अनु
    M.Sc CHEMISTRY
    1ST class
    :-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी पोस्ट पर जब मैंने कमेन्ट में "अक्वारेजिया" लिखा था तभी मैंने सोचा था इस पर कुछ लिखने को । हाँ! पता चला था आपने अच्छा prank किया था निवेदिता से । अब फर्स्ट क्लास रसायनशास्त्री ने उत्तीर्ण कर दिया मुझे ,तो फिर अब तो ठीक है ।

      हटाएं
  7. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह! लाजवाब लेखन | आनंदमय और बहुत ही सुन्दर, सुखद अभिव्यक्ति विचारों की | पढ़कर प्रसन्नता हुई | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  9. विज्ञानं भी भावनायों जुडी है -बहुत अच्छा प्रस्तुति
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

    जवाब देंहटाएं
  10. आज दस मई के दैनिक जागरण में फिर से कालम में जीवन एक केमिस्‍ट्री शीर्षक से आपकी यह पोस्‍ट प्रकाशित है, बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी :
    अमित जी,
    नमस्कार !

    मुझे तो लगता है, जो सबसे इम्पोर्टेन्ट बात होती है उसे अंडरलाइन किया जाता है। अब हिन्दुस्तानियों के लिए उनकी नाक से बढ़कर क्या होता है भला :) इसलिए उसे अंडरलाइन करना ज़रूरी है :)
    इन दिनों अपने घर से दूर हैं हम और अपनों का साथ भी नहीं है हमारे पास। बस आज ही भारत पहुँचे हैं, पहुँचते ही कई पोस्ट्स और कॉमेंट्स पढ़े, दिल ऐसा ख़ुश हुआ कि क्या बताएँ । भारत आकर एक दिन पहले का दैनिक जागरण हाथ लग गया ( १० मई ) और उसमें आपकी एक पोस्ट भी 'जीवन एक केमिस्ट्री' पढने को मिल गई, तो सोचे आपको बधाई दे दें।
    बहुत बहुत बधाई आपको !
    हम तो कोमेंट कर रहे हैं लेकिन कोमेंट नहीं हो पा रहा है, इसलिए ईमेल से स्वीकार कीजिये।
    आभार !
    स्वप्न मञ्जूषा 'अदा'

    जवाब देंहटाएं