'वेदना' शब्द की उत्पत्ति में 'वेद' शब्द का क्या महत्त्व है, यह तो नहीं पता ,परन्तु इतना तो अवश्य तय है कि जितना ज्ञान वेदना की स्थिति में प्राप्त होता है उतना ज्ञान वेद से भी नहीं मिल सकता | शायद इसीलिए उस स्थिति को वेद-ना कहा गया है | वेदना में भावनाओं का भी समावेश झलकता है | उसके इतर 'दर्द' शब्द का प्रयोग शारीरिक पीड़ा के लिए अधिक किया जाता है |
दर्द जहां भी होता है और जब होता है तभी उस दर्द के होने वाले हिस्से की उपयोगिता समझ में आती है | यह रिश्तों के दर्द पर भी लागू होता है | ईश्वर ने दर्द को शायद इसलिए बनाया कि दर्द होने पर हम उसके प्रति सजग हो जाए और समय रहते उपचार कर उस हिस्से , अंग या सम्बन्ध को दुरुस्त कर लें |
दर्द भी अनेक प्रकार के होते हैं | पर सब दर्दों का राजा होता है 'दाँत का दर्द' | यह ऐसा दर्द है जो शुरुआत में बहुत मीठा लगता है | कुछ लोग इसी मिठास को टीसना भी कहते हैं | फिर शुरू होने के बाद लुका छुपी खेलना शुरू कर देता है | कभी लगेगा इधर हो रहा है , कभी लगेगा उधर चला गया | कभी गुस्से में बेचारे मसूढ़े को फुला देगा | कभी कान के नीचे तक दर्द की लकीर सी बना देता है | मजे की बात है , यही दर्द एकमात्र ऐसा दर्द है जिसका लोकस ड्रा किया जा सकता है | इसी दर्द से निजात पाने के लिए बड़े बड़े राजा महाराजा अपना राज पाट भी लुटाने को तैयार हो जाते थे |
ईश्वर ने दाँत के दर्द को इतना महत्व इसलिए दिया होगा जिससे हम लोग इसका प्रयोग अत्यंत सावधानी के साथ करें | यह सोच कर लापरवाही न करें कि अरे यह तो ३२ दाँत है ,एकाध टूट भी गए तो क्या | जीवन जीने के लिए भोजन प्रमुख आवश्यकता है और भोजन के लिए मुख में दाँत सर्वाधिक महत्वपूर्ण | इसीलिए सर्वाधिक दर्द का समावेश भी दांतों के साथ ही किया गया |
यह तो सिद्ध सी बात है , जिस दर्द में सबसे ज्यादा दुःख होता है , वही बात हमारे जीवन के लिए सर्वाधिक महत्व वाली होती है | आज मुझे कई दिनों से दाँत में दर्द हो रहा था पर यह तय कर पाना मुश्किल था कि, हो कहाँ रहा है | बहुत कोशिश की ,शीशे के सामने मुंह फाड़ फाड़ कर देखने की , पर समझ न आया कि कलप्रिट दाँत कौन सा है | आखिर आज आफिस से लौटते समय अपने एक मित्र डाक्टर के यहाँ गया | मुझे देखते ही वह बहुत खुश हुआ क्योंकि मै अपने दांतों की सेहत को लेकर काफी अभिमान किया करता था | खैर , मेरे दर्द को देख उसने थोड़ा अपनी हंसी रोकी और अपनी 'आधी कुर्सी आधा बेड' टाइप बिस्तर पर मुझे लिटा दिया | मुआयना करने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि थर्ड मोलर नामक प्राणी अपनी औकात से ज्यादा बाएं दायें खिसक रहा है | अतः उसे मुख-संसद से बाहर निकाल दिया जाय |
जितनी आसानी से मेरे मित्र चिकित्सक ने यह बात कह दी , मुझे अफ़सोस हुआ | जिस दाँत ने अपने जीवन भर मुझे खिलाया -पिलाया और हंसाया भी खूब , उसे ही अब उखाड़ फेकने को कह रहे थे वह | खैर मजबूरी है उनकी बात मानना , नहीं तो दाँत का दर्द ही वो दर्द है जो इस बात को झूठ सिद्ध कर देता है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता ' |
अभी तो पेन किलर खा कर उस दर्द का बखान लिख रहा हूँ | कल की शाम फिक्स हुई है ,उस शातिर को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए |
ओह्ह... ये दांत भी न ...जल्दी निजात मिले इस दर्द से आपको.
जवाब देंहटाएंदाँत दर्द ने भी कुछ लिखवा ही दिया ....
जवाब देंहटाएंदर्द इतना शातिर है कि सारा ध्यान और सारी ऊर्जा खींच लेता है..
जवाब देंहटाएंदाँत दर्द में अक्सर बहुत कुछ लिख जाता है अमित जी
जवाब देंहटाएंRecent Post…..नकाब
पर आपका स्वगत है
बड़ा रोचक आलेख लिखा है आपने |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आप जल्दी स्वस्थ हों |
दाँत दर्द से राहत मिले ...
जवाब देंहटाएं:-)
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जवाब देंहटाएंBe positive sir ji,कुछ दिन नरम नरम खाने को मिलेगा :)
जवाब देंहटाएंदन्त छिद्रे महाशोकः,
हटाएंब्रह्म बेलोपजायते,
तस्मिन् कीटाणी परिभ्रमंती ,
तस्मार्थ रक्षणाय न कश्चित् उपाय |
:))
हटाएंबहुत ही रोचक पोस्ट....|
जवाब देंहटाएंसादर नमन |
बेरहम डॉक्टर को भी दर्द नहीं होता दांत उखारते वक्त.. अब तो राहत मिल गयी होगी..
जवाब देंहटाएंमुबारक हो! दांत गया , दर्द गया।
जवाब देंहटाएंbahut achha likha sir,
जवाब देंहटाएंएक पोस्ट मुझे भी लिखनी है डेण्टिस्ट के अनुभव की!
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