छोटे छोटे गाँव / कस्बों / देहातों में एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने के लिए पगडंडियों जैसे अनेक टेढ़े मेढ़े परन्तु कम दूरी के रास्ते होते हैं | इन पर केवल वहीँ के रहने वाले लोग सुगमता से चल सकते हैं | वृहद स्तर पर देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से की यात्रा के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग होते हैं,जिन पर हर कोई सुगमता से चल सकता है |
क्षेत्रीय भाषा एवं राष्ट्रीय भाषा का भी स्वरूप कुछ ऐसा ही है | राष्टीय भाषा राष्ट्रीय राजमार्ग जैसी होनी चाहिए , एकदम साफसुथरी और सबके लिए सुगम और सुलभ , जिससे वह पूरे देश को एक साथ जोड़ सके | भले ही राष्ट्रीय राजमार्ग के रास्ते में पड़ने वाले क्षेत्रों में पगडंडियों जैसी अनेक क्षेत्रीय भाषाओं का सामना क्यों न करना पड़े | क्षेत्रों के विकास के लिए ये पगडंडियाँ जैसी क्षेत्रीय भाषाएँ भी आवश्यक ही हैं |
"हिंदी" भाषा भी हमारे देश में एक कोने से दूसरे कोने तक राष्ट्रीय राजमार्ग जैसी ही प्रतिपादित और विकसित की जानी चाहिए | इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर कहीं कहीं अंग्रेजी भाषा सरीखे फ़्लाइओवर भी हैं ,पर कितने भी फ़्लाइओवर बन जाएँ , पुराने रास्ते कभी बंद नहीं होते और न ही उन पर चलने वालों की संख्या में कमी आती है |
हिंदी भाषा का सम्मान और इस पर गर्व किया जाना चाहिए | किसी देश की मौलिक पहचान उसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय भाषा से ही की जाती है | इसके अतिरिक्त अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जित करना अपने आप में बहुत अच्छी बात है, परन्तु हिंदी पर व्यंग कर अन्य भाषाओं को महत्व देना शर्म और दुर्भाग्य की बात है |
हर्ष की बात है कि हिंदी ब्लॉग जगत में लोग उत्साह के साथ हिंदी का प्रयोग कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं |
विदेश में रह कर हिंदी में लेखन करने वालों का इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है |
सार्थक लेखन...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की शुभकामनाएं.....
सादर
अनु
भारतेंदु हरिश्चंद्र का "निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल " . के मूल में देश को एक भाषा देनी ही थी जो हमको एकजुट रख सके. सम्यक आलेख .
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की शुभकामनाये..
:-)
हमारी हिंदी का मान सदा बना रहे .....
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी बहुत अधिक लोगों को नहीं आती है, अंग्रेजी पर अधिक निर्भरता नये वर्ग उत्पन्न कर देगा।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ सर!
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ!
सादर
हिंदी भारतवर्ष में ,पाय मातु सम मान
जवाब देंहटाएंयही हमारी अस्मिता और यही पहचान |
जवाब देंहटाएंअमित जी,
आपने हिन्दी भाषा के प्रति तमाम रूपकों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किये हैं जो बहुत सहजता से ग्राह्य होते हैं.
वह चाहे 'राष्ट्रीय राजमार्ग और क्षेत्रीय पगडंडियों' का रूपक हो अथवा 'फ्लाईओवरों और पुराने रास्तों की उपयोगिता' का रूपक हो.
आपने उन सभी हिन्दी लेखकों का आभार भी व्यक्त किया जो विपरीत स्थितियों में रहकर भी हिन्दी लेखन को बढ़ावा देकर अपने स्नेहिल झुकाव का परिचय देते हैं.
आपकी इस संवेदना के प्रति मन में अपार हर्ष उमड़ रहा है... इसलिये इसे व्यक्त किये बिना न रह सका. धन्य हुआ मैं यहाँ उपस्थित होकर.
प्रतुल जी , हार्दिक आभार |
हटाएंसार्थक आलेख...आने वाला हर युग हिंदी युग हो और हर दिन हिंदी दिवस... हिंदी दिवस की शुभकामनाये...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंविदेशों में रहने वाले हिंदी का सम्मान करते हैं ...
जवाब देंहटाएंपर हम लोग ????
आज का एक ज्वलंत प्रश्न है ?
Great analogy between Rajmarg/ Pagdandi vs Rashtrabhasha/ regional languages and dialects.
जवाब देंहटाएंCompletely agree!!
काहें की हिन्दी भाई -इस देश में २२ से अधिक संविधान मान्य भाषाएँ हैं और एकाध और इस सूची में आने को तडफड़ा रही हैं -हमने तो हिन्दी का जनाजा खुद उठा रखा है !
जवाब देंहटाएंsarthak lekhan ki badhai
जवाब देंहटाएंहिन्दी अपना प्रसार स्वयं ही कर रही है ..... सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व्याख्या की है आपने अमित जी -इस सार्थक लेखन के लिए बहुत २ बधाई
जवाब देंहटाएंI love my राष्ट्रीय भाषा
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