साथ उसका और ,
सफ़र कार का,
बाहर मौसम सुहाना था,
भीतर वह दीवाना था ,
निगाहों में उसके रफ़्तार थी,
मेरी निगाहें उस प्यार पे थीं ,
उंगलियाँ उसकी गुनगुनाती जब थी ,
मैं लजाती शर्माती इठलाती तब थी ,
पलकें मेरी गिरती उठती ,
और सहमती थी भय से ,
पर जब भी देखा था हौले से ,
मुस्करा के उसने ,
निगाहें तब तब ठिठकी सी थी |
अरे ये किसने लिखी???
जवाब देंहटाएं:-)
सादर
अनु
मिलियन डालर क्वेश्चन .....!!
हटाएंदेख लेती हैं बहुत कुछ ये ठिठकी निगाहें.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत भाव.
सहमी, ठिठकी निगाहें...गहन भाव
जवाब देंहटाएंआज बगावत का मुहूर्त था क्या?
जवाब देंहटाएंडर के आगे जीत है |
हटाएंअमित जी ..आज आपने कैसे ये कविता रच डाली :)))
जवाब देंहटाएंयह 'कार-काव्य' है | इसमें व्यक्त भावनाएं 'कविता' की हैं जो कार में 'कहानी' संग बैठी है | 'कहानी' मशगूल है कार चलाने में और 'कविता' रह रह कर बस उसे देख लेती है, ठिठकती निगाहों से कभी कभी |
हटाएंबढ़िया है कहानी भी , कविता भी :)
जवाब देंहटाएंएक मिलियन डॉलर क्वेश्चन हमारा भी है.. किसके लिए लिखी ????
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प्यार एक सफ़र है, और सफ़र चलता रहता है...
वाह! बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएं:):) बढ़िया है ...
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