मंगलवार, 5 जून 2012

" दरख़्त यादों के ........"



एक पौधा नन्हा सा ,
यादों का उनकी,
उग आया ,
बिना बताये ,
बस चुपके से,
मन में मेरे ,
जब कभी सूखने को आता,
बरबस आंसू निकलते मेरे,
और फिर हो जाता,
वो हरा भरा,
धीरे धीरे वो,
बड़ा हो चला ,
और रोकने लगा,
हर आने वाली,
रोशनी और हवा को,
चाहा काट दूँ आज,
वो दरख़्त यादों का,
और सांस लूँ,
नई किरणों में ,
पर आज फिर, 
मुस्कुराती वो दिख गई,
झुरमुट में दरख़्त के,
और बोली हौले से ,
"आज तो पर्यावरण दिवस है न ",
एक बार फिर रह गया  ,
कटने से दरख़्त,
यादों का  |

16 टिप्‍पणियां:

  1. पर्यावरण पर मन मोहक सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति बहुत ख़ूब सर जी

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  2. हमेशा यूँ ही हरे - भरे रहें दरख्त यादों के भी और हमारी वसुंधरा के भी... बहुत खूबसूरत रचना...

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  3. यादों के दरख्तों में तो अमृत बसता है, एक बार कट कर पुनः उग आते हैं वे...

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  4. अच्छा किया....................

    यादों के दरख्त कभी काटता है कोई???

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  5. आज तो पर्यावरण दिवस है न ",
    एक बार फिर रह गए ,
    कटने से दरख़्त,
    यादों के |

    गनीमत है.....
    पर्यावरण दिवस ने बचा दिया....
    नहीं तो यादों को कहाँ टाँगते...!!
    खूबसूरत......
    बहुत खूबसूरत....!!!

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  6. यादों के दरख़्त सूखते नहीं .... आंसुओं का सिंचन होता ही रहता है

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  7. जीवन के पर्यावरण के लिये,तपते मौसम में, इस वृक्ष की छाँह भी तो चाहिये !

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  8. यादों के दरख़्त काटे नहीं कटते कितनी ही कोशिश कर लो.

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  9. एक बार फिर रह गए ,
    कटने से दरख़्त,
    यादों के |
    बहुत बढिया ...

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  10. एक बार फिर रह गया ,
    कटने से दरख़्त,
    यादों का

    चलो इसी बहाने भावनाएं कुछ दिन और प्रदूषित होने से बची रहेंगी.

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  11. simply beautiful...
    we often fail to forget what we feel like forgetting most..

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  12. हर रोज मनता रहे -पर्यावरण दिवस ...

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