सोमवार, 29 अप्रैल 2013

" काश !............."


काश ! 

बस यूँ ही ,
वो मुस्करा दें ,
मेहरबानी  उनकी । 

पलकें उठा ,
मिला ले नज़र,
किस्मत हमारी । 

इतना हँसे कि,
गाल अवतल हो जाएँ ,
सुब्हान-अल्लाह । 

लब खोल दें ,
दो बोल बोल दें ,
ये जहां महक जाये । 

दो कदम ,
सफ़र ,
ज़िन्दगी के ,

इस 'दो' में ,
'एक' उनके हों ,
खुशनुमा सफ़र हो जाए ।

 ( 'अवतल गाल ' से अभिप्राय  'dimpled cheeks'   का है । 

रविवार, 28 अप्रैल 2013

" अक्वारेजिया................."


पढ़ाई के दौरान सभी विषयों में 'केमिस्ट्री' मुझे सबसे अधिक नीरस विषय लगता था और सच बात तो यह है कि समझ में भी कम आता था । गणित और फिजिक्स में अभिरुचि अधिक थी और वह दोनों सरल भी लगते थे । परन्तु कम समझ में आने के बावजूद केमिस्ट्री में पढ़ी अनेक बातें जीवन के बहुत करीब और स्पष्ट लगती हैं । 

आपस में प्रेम और व्यवहार में हमारा दिल 'अक्वारेजिया' जैसा होना चाहिए । 'अक्वारेजिया'एक ऐसा साल्वेंट है जिसमें सोना और प्लेटिनम तक भी घुल जाता है ।जिससे हम प्रेम करें उसे अपने में पूरी तरह से घुला लेना चाहिए अथवा उसमें खुद को घोल देना चाहिए । प्रेम में समर्पण ऐसा हो कि प्रेम करने वाले का अंशमात्र भी शेष न बचे । वह एकदम से अपने प्रेमी के हृदय में विलीन हो जाए । दोनों प्रेमियों की ज़रा भी कडवाहट एक दूसरे के हृदय में 'प्रेसीपिटेट' न हो ।  

केमिस्ट्री में प्रयोगशाला में 'पिपेट' का प्रयोग बहुधा किया जाता है ,द्रव की माप के लिए । हमारा मन भी बिलकुल 'पिपेट' जैसा ही होता है । दोनों सिरों से खुला और एक ओर जब भी किसी का प्यार भरा सहारा मिला ,मन में भर जरूरत प्यार भर गया । परन्तु वह प्यार टिकता तभी तक है जब तक वह प्यार भरा सहारा एक ओर से मन को दबाये हुए रहता है । जितना भी और जहां कहीं से भी प्यार भरना हो ,अपना मन रुपी 'पिपेट' उसी के प्यार में डुबोकर बस मन के दूसरी ओर अपने प्यार से पूर्ण हथेली लगा दीजिये ,बस देखते ही देखते मन वांछित प्यार से भर जाएगा । 

केमिस्ट्री में सबसे अच्छी लगती थी  'इनर्ट गैस' , स्वयं तो कुछ नहीं करती परन्तु जो कोई उसे अपने भीतर धारण कर लेता है उसे आसमान तक पहुंचा देती है । हमें भी ऐसे ही होना चाहिए , पूरी तरह 'इनर्ट' ,परन्तु जब कभी भी जिस किसी के भी साथ हो लिए उसका भरपूर साथ देते हुए उसे सदैव सफलता की ओर अग्रसर होने में सहायता करते रहे और कार्य संपन्न होने के बाद पुनः 'इनर्ट' हो जायें । 

केमिस्ट्री की क्रियाओं में 'उत्प्रेरक' बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । दो तत्व आपस में कैसा व्यवहार करेंगे और क्या परिणाम देंगे ,यह तीसरे तत्व ( उत्प्रेरक) पर निर्भर करता है । उत्प्रेरक बदल दे या हटा दे तो परिणाम बदल जाते हैं । जीवन में भी दो लोगों के व्यवहार तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति या अनुपस्थिति के कारण परिवर्तित हो जाते हैं । कुछ लोग कभी सकारात्मक हो कर संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं तो कभी कभी कुछ लोग संबंधों को लगभग समाप्तप्राय ही करा देते हैं । हमें सदा पाजिटिव 'उत्प्रेरक' की तरह ही व्यवहार करना चाहिए । ऐसे उत्प्रेरक (व्यक्ति) जो संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं उनकी पहचान करते हुए उनके सामने व्यवहार करने से बचना चाहिए । 

क्रियाएं भी दो प्रकार की होती हैं एक्सोथर्मिक और एंडोथर्मिक ।  एक्सोथर्मिक में उष्मा का उत्सर्जन होता है तापमान बढ़ जाता है । एंडोथर्मिक में उष्मा का ह्रास होता है और तापमान कम हो जाता है । बात व्यवहार में और संबंधों के समीकरण में जब कभी भी आपस में बातचीत हो या विचारों का आदान प्रदान हो तब यह क्रिया एंडोथर्मिक होनी चाहिए अर्थात आपस में एक दूसरे के क्रोध रुपी उष्मा को हजम करते हुए माहौल का तापक्रम कम कर देना चाहिए । होता प्रायः इसके विपरीत ही है ,बातचीत इस कदर बिगड़ जाती है कि क्रोध विकराल रूप ले लेता है और तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जो दोनों पक्षों के लिए हानिकारक होता है । 

अंत में एक बात और , सभी तत्वों में सबसे सुन्दर और चरित्रवान तत्व 'पारा' लगता है और होता भी है । हमार मन भी ऐसे ही होना चाहिए , पारा की तरह , चाहे जिससे मिला दो ,घूम फिर कर लौट आता है  । न किसी के पास स्वयं को छोड़ता है  और न ही किसी  को अपने साथ चिपका कर लाता है । मिलेगा भी कभी, तो केवल अपनी ही तरह चमकते हुए पारा से ही , अनंत बूंदे भी हो पारा कि तो भी मिलकर सब आपस में एक बड़ी बूँद बन जाती है । 

मैं कितना 'केमिकली करेक्ट' हूँ ,यह तो अब आप ही बताएँगे । 


बुधवार, 24 अप्रैल 2013

" अंगड़ाई ......या .......हस्ताक्षर ......."


'अँगड़ाई' मनुष्य शरीर द्वारा अपनाई जाने वाली एक बहुत ही रोचक क्रिया है । कितना भी कोई थका क्यों न हो ,बस जमकर एक 'अँगड़ाई' ले ले ,अचानक से स्फूर्ति आ जाती है । जैसे बच्चे छोटी छोटी कार ,बिना बैटरी वाली , बस आगे पीछे रगड़ रगड़ कर छोड़ देते हैं ,और वह खिलौना रुपी कार तेजी से आगे भागने लगती है बस उसी तरह 'अँगड़ाई' लेते ही मनुष्य में भी आगे बढ़ने की ऊर्जा आ जाती है । 

इसके विपरीत यदि किसी में अत्यधिक ऊर्जा है और वह थक नहीं रहा है तब भी वह मनुष्य 'अँगड़ाई' लेकर अपनी ऊर्जा व्यय भी करता है अर्थात 'अँगड़ाई' ऊर्जा देती भी और हरती भी है । 

प्रत्येक व्यक्ति का 'अँगड़ाई' लेने का अपना एक विशेष प्रकार होता है । इसमें कोई किसी की नक़ल नहीं कर सकता है । जैसे प्रत्येक व्यक्ति का हस्ताक्षर भिन्न होता है और उस हस्ताक्षर से उसकी पहचान हो जाती है उसी प्रकार से हर कोई अपने अपने तरीके से 'अँगड़ाई' लेता है और अगर अँधेरे के कारण वह व्यक्ति दिख न पा रहा हो परन्तु उसकी 'अँगड़ाई' लेने की अदा दिख जाए तब उसकी पहचान हो सकती है । 

लड़कियां तो अनेक प्रकार से स्टाइल मार मार कर 'अँगड़ाई' लेती हैं । लडकियां अगर 'अँगड़ाई' लेते समय मुस्करा भी रही हो तब निश्चित तौर पर वह किसी के प्रेम में होती हैं । किसी किसी की ''अँगड़ाई' लेने की अदा तो अत्यंत मोहक और सम्मोहक होती है । लड़के तो अत्यधिक ऊब जाने के कारण ही अक्सर  'अँगड़ाई' लेते हैं ।     

'अँगड़ाई' जानवर भी लेते हैं । कुत्ते सो कर उठने के बाद अक्सर अपने आगे और पीछे के पैर पास लाकर अपनी पीठ ऊंट के कूबड़ की तरह उठाकर 'अँगड़ाई' लेते हैं और उसके बाद वे एकदम से चैतन्य हो जाते हैं । 

'अँगड़ाई' की विशेषता यह है कि कोई व्यक्ति 'अँगड़ाई' अपने मन से ही ले सकता है । अगर आप किसी को 'अंगडाई' देना चाहे तब वह संभव नहीं है । बिलकुल उसी तरह जैसे बिजली की कोई भी मोटर कितना करेंट लेगी वह उस मोटर की ही मर्जी है । आप चाह कर किसी मोटर को मन वांछित करेंट नहीं दे सकते । 

'अंगडाई' सदैव एकांत में ही ली जानी चाहिए । 'अंगडाई' लेने वाले को तो पता तो होता नहीं कि ,उस समय उसकी शारीरिक स्थिति किस तरह की बन और दिख रही है ,जो कभी कभी हास्यास्पद भी हो जाती है । 

'अँगड़ाई' और हस्ताक्षर में एक विशेष प्रकार की समानता का भी होना कहा जा सकता है । जैसे हस्ताक्षर करते समय अगर कोई उसे बीच में रोक दे या कोई स्वयं किसी कारण से अपना हाथ बीच में रोक ले तब पुनः उस हस्ताक्षर को पूर्ण करने में वह मजा और 'फिनिश' नहीं आती उसी प्रकार से 'अँगड़ाई' लेते समय अगर किसी कारणवश 'अँगड़ाई' बीच में छोडनी पड़े तब पुनः उसे पूरा करने में फिर आनंद नहीं आता । 

अतः 'अँगड़ाई' जब भी लें ,भरपूर ले और पूरी की पूरी लें । 
                         

                       " अब मेरी थकी कलम ने ली 'अँगड़ाई' और यह पोस्ट निकल आई "

रविवार, 21 अप्रैल 2013

"बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ......."



इसी वर्ष फरवरी माह की तीन तारीख को हमारे विवाह को हुए पचीस वर्ष हो गए थे । जैसा कि लोग कहते हैं पचीस साल विवाह के, यह तो बहुत बड़ी बात है ,गोया मियाँ बीबी नहीं शेर और बकरी हैं ,जो रह रहे हैं पिछले पचीस सालो से एक साथ और बकरी अभी भी जीवित है । खैर लोगों को अपेक्षा थी कि हम लोग कोई बड़ा फंक्शन करेंगे । अमूमन लोग करते भी हैं । हम लोग भी थोड़ा बहुत उत्सव मनाना चाहते थे और दोस्तों को उसमें शामिल भी करना चाहते थे परन्तु आई.आई.टी.वालों ने बच्चों को छुट्टी नहीं दी और उसी दिन दोनों की क्विज़ रख दी ( आई आई टी में शिक्षक पढ़ाते कम ,पूछते ज्यादा है । अगर वहां पी .टी .एम .होती तब निवेदिता वहां के शिक्षकों की क्लास जरूर ले लेती )। जब वे दोनों आने में असमर्थ तब बगैर बच्चों के उत्सव कैसा । खैर हम लोगों ने कोई भी फंक्शन नहीं तय किया और सोचा कि शाम को कहीं बाहर (अच्छा) खाना खा लेंगे । 

इसी बीच हमारे घर के पास रहने वाले श्री त्रयम्बक तिवारी जी ( लखनऊ में एक बहुत पुराना कोचिंग संस्थान "तिवारी ट्यूटोरियल्स" के संस्थापक और संचालक )  के यहाँ से उनके छोटे भाई के विवाह समारोह का निमंत्रण आया । उस समारोह की तिथि भी तीन फरवरी ही थी । जब वो निमंत्रण ले कर आये तब निवेदिता ने उन्हें बताया कि उसी तिथि को हम लोगों का भी विवाह हुआ था और अबकी तो पचीसवीं वर्षगाँठ है हमारी । खैर बात आई गई हो गई और त्रयम्बक जी ने काफी अनुरोध किया उनके समारोह में शामिल होने के लिए ।

तीन फरवरी की शाम को हम लोगों ने तय किया ,कहीं बाहर चलने के बजाय, चलो उन्ही के यहाँ शादी में शामिल हो लेते हैं । उत्सव का माहौल होगा अच्छा लगेगा । बच्चे तो आये नहीं है और निवेदिता ऐसे मौकों पर बच्चों को बहुत मिस भी करती हैं । 

हम लोग त्रयम्बक जी के यहाँ शादी में पहुंचे । वहां उनके छोटे भाई मयंक का विवाह धूमधाम से शेफाली के साथ संपन्न हुआ । इसी बीच उनके यहाँ आयोजित नाच गाने के कार्यक्रम के मंच से 'डी जे' ने उदघोषणा की कि यहाँ आये हुए मेहमानों में से कृपया अमित और निवेदिता मंच पर आ जाएँ और सभी को उसने बता दिया कि आज इनकी शादी की 'रजत जयंती' है । मंच पर पहुंचे तो देखा त्रयम्बक जी के परिवार के लोग हाथों में फूल माला लिए हम लोगों के स्वागत में खड़े थे । उन्होंने वर मालाओं का भी इंतजाम कर रखा था । हम लोगों के लिए तो यह बहुत बड़ा सरप्राइज़ था । सच बताएं तो लाज भी आ रही थी ,अचानक से पूरी महफ़िल के लिए हम लोग आकर्षण का केंद्र जो बन गए थे । फिर तो फोटो शूट भी शुरू हो गया । यह फोटो आज ही हम लोगों को त्रयम्बक जी दे कर गए तभी सोचा कुछ लिख दूं संस्मरण के लिए । 


अब जो केवल फोटो देखेगा ,सोचेगा इतना बड़ा फंक्शन कर लिया और हमें बुलाया भी नहीं । खैर जो भी यह सरप्राइज़ तो जीवन भर के लिए एक धरोहर हो गया ।  
                                                             "गोरा तो नहीं हूँ परन्तु लाज से मैं भी लाल हो जाता हूँ कभी कभी "

                                            चित्र में बाएं से : अमरीषा ,आँचल ,निवेदिता ,मयंक-शेफाली ,मै ,यतीन्द्र और त्रयम्बक जी 

'मयंक-शेफाली' को उनके विवाहित जीवन के लिए तमाम शुभकामनायें और ईश्वर करे जब वो अपनी पचीसवीं सालगिरह मनाएं तब एक बार फिर हम लोग उनके साथ अपनी पचासवीं सालगिरह में शामिल हों । 



                                                                              विवाह का चित्र (०३.०२.१९८८)

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

" केहि विधि प्यार जताऊं ..........."


कबहुँ आप हँसे ,
कबहुँ नैन हँसे ,
कबहुँ नैन के बीच ,
हँसे कजरा  ।

कबहुँ टिकुली सजै ,
कबहुँ बेनी सजै ,
कबहुँ बेनी के बीच ,
सजै गजरा । 

कबहुँ चहक उठै ,
कबहुँ महक उठै ,
लगै खेलत जैसे,
बिजुरी औ बदरा । 

कबहुँ कसम धरें ,
कबहुँ कसम धरावै ,
कबहूँ रूठें तौ ,
कहुं लागै न जियरा । 

उन्है निहार निहार ,
हम निढाल भएन  ,
अब केहि विधि  ,.
प्यार जताऊं सबरा । 


गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

"चूहा दिवस" पर विशेष .................."


सभी देवी ,देवताओं में सबसे पॉपुलर भगवान 'श्री गणेश' जी हैं । विशेषकर बच्चों को तो वह बहुत ही फ्रेंडली और आकर्षक लगते हैं । उनसे भी अधिक लोकप्रिय इस जगत में है ,उनकी सवारी 'चूहा' । बचपन में सबसे पहले बच्चे कहानियों में चूहे के बारे में ही अक्सर सुनते हैं । खाना खिलाते समय प्रायः उनकी माएं चूहे का वर्णन अवश्य करती हैं  । बचपन में दांत टूटने पर शत प्रतिशत सभी बच्चों से लोग यही पूछते हैं ,क्या हुआ ,तुम्हारा दांत चूहा ले गया ! खिलौनों में भी चूहे सदैव कौतूहल ही पैदा करते हैं ।

'४ अप्रैल' को चूहा दिवस घोषित किया गया है । इसी से सिद्ध होता है कि चूहे का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है । पुराने ज़माने में तो चूहों का घर में पाया जाना समृद्धि का प्रतीक माना जाता था ।

जब चूहों को पता चला कि आज ४ अप्रैल को 'चूहा दिवस' मनाया जा रहा है ,तब चूहों ने आपस में तय कर इस तिथि को अपना 'वैलेंटाइन दिवस' मान कर सेलिब्रेट करना तय कर लिया ।

बस चूहों के इस वैलेंटाइन दिवस पर प्रस्तुत है 'चूहा-चुहिया' के एक जोड़े के बीच हुए 'प्रेम-संवाद' की एक झलक :

चूहा :       'बिल' दे के देखो ।

चुहिया :    हम 'बिल' दे चुके सनम ।

चूहा :        'बिल' दीवाना बिन सजना के माने न ।

चुहिया :    हम आपके 'बिल' में रहते हैं ।

चूहा :        हमारा 'बिल' आपके पास है ।

चुहिया :   'बिल' है कि  मानता नहीं ।

यह संवाद चल ही रहा था कि चुहिया ने चूहे से एक गाने की फरमाइश कर दी । इस पर चूहे ने गाना सुनाया " वो 'बिल' कहाँ से लाऊं ,तेरी याद जो भुला दे ...."। इस पर चुहिया ने लजाते हुए चूहे से कहा ," सच सच बताओ तुम्हारे 'बिल' में मेरे अलावा और कोई तो नहीं रहता "। चूहे ने कहा ," कहो तो 'बिल' चीर कर दिखा दूं  " । चुहिया सेंटी हो गई और अपने चूहे के मुंह पर उंगली रखती हुई बोली ,नहीं फिर ऐसी बात मरने वाली मत करना । मैं तुम्हारे बगैर ज़िंदा नहीं रह पाऊँगी । 

यह सिलसिला कुछ और आगे बढ़ता तभी अचानक मेरी श्रीमती जी ने मुझे झिंझोड़ते हुए उठाया ,क्या बात है ! नींद में क्या बिल विल लगा रखा है । अरे मैंने ब्राडबैंड का बिल कल ही जमा कर दिया है । नेट का कनेक्शन नहीं कटेगा । नींद में भी आपको नेट के बिल की ही चिंता रहती है कि कहीं कट न जाए और फेसबुक / ब्लॉग बंद हो जाए आपका ।

अब उनको कौन समझाए कि नींद में भी मैं उनको ही अपने बिल ,अरे नहीं ,दिल में संजोये हुये था  

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

" विद्दोत्तमा ,लौट आओ फिर एक बार ......"


मैं काट रहा हूँ ,
वह शाख ,
जिस पर बैठा हूँ ,
कह उठता हूँ ,
ऊंट को उट्र उट्र  ,
यूँ  ही अक्सर ,
तमाम बेवकूफियां ,
कर गुजरता हूँ ,
इस उम्मीद में ,
कि मिलें तुम्हारी ,
झिड़कियां ,
शायद लिपटी ,
प्यार और दुलार में ,
और रच डालूं मैं ,
एक ग्रन्थ और ,
प्रणय का ,
अब आ भी जाओ ,
तुम फिर एक बार ,
शाख टूटने से पहले ,
मेरी ज़िन्दगी में ,
बन 'विद्दोत्तमा 
बस एक बार ।

                                      "मूर्ख दिवस पर एक अदद 'विद्दोत्तमा' की तलाश में ........"